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भारत सरकार बांग्लादेश के साथ सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति के पुनर्निर्माण में करेगी सहयोग

Indian government will cooperate with Bangladesh in the reconstruction of Satyajit Ray's ancestral property

भारत सरकार ने बांग्लादेश सरकार के साथ मिलकर प्रख्यात फिल्म निर्माता और साहित्यकार सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति के मरम्मत और पुनर्निर्माण में सहयोग करने की इच्छा जताई है। यह संपत्ति बांग्लादेश के मायमंसिंह में स्थित है और सत्यजीत रे के दादा, प्रसिद्ध साहित्यकार उपेंद्र किशोर रे चौधरी की थी।

भारत सरकार ने इस संपत्ति के विध्वंस पर गहरी चिंता जताई है और इसे बांग्ला सांस्कृतिक पुनर्जनन के प्रतीक के रूप में संरक्षित करने की अपील की है। भारत सरकार ने एक बयान में कहा कि यह संपत्ति, जो वर्तमान में बांग्लादेश सरकार के स्वामित्व में है, जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है।

इस ऐतिहासिक इमारत को साहित्य संग्रहालय और भारत-बांग्लादेश की साझा सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में पुनर्निर्मित करने की सलाह दी गई है। भारत सरकार ने इसके लिए बांग्लादेश सरकार के साथ सहयोग करने की पेशकश की है।

बांग्लादेशी अखबार ‘द डेली स्टार’ की वेबसाइट के मुताबिक, इस इमारत का उपयोग पहले मैमनसिंह शिशु एकेडमी के रूप में किया जाता था। बता दें कि रे परिवार का यह लगभग एक सदी पुराना घर मैमनसिंह के हरिकिशोर रे चौधरी रोड पर स्थित है।

सत्यजीत रे, जिनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था, भारतीय सिनेमा के दिग्गज थे। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘अपू ट्रिलॉजी’, ‘जलसाघर’, ‘चारुलता’, ‘गूपी गायने बाघा बायने’, ‘पथेर पांचाली’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ शामिल हैं। वे न केवल फिल्म निर्माता थे, बल्कि पटकथा लेखक, वृत्तचित्र निर्माता, लेखक, निबंधकार, गीतकार, पत्रिका संपादक, चित्रकार और संगीतकार भी थे।

उन्हें अपने करियर में 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कार और 1992 में मानद ऑस्कर पुरस्कार मिला। इसके अलावा, भारत सरकार ने उन्हें 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया था।

भारत सरकार ने इस संपत्ति के विध्वंस को रोकने और इसे एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। यह संपत्ति न केवल सत्यजीत रे की विरासत को संरक्षित करने का प्रतीक है, बल्कि बांग्ला साहित्य और कला के इतिहास को भी दर्शाती है।

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