भारत के पहले हॉलीवुड अभिनेता साबू की कहानी अब बड़े पर्दे पर जल्द ही दिखाई जाएगी। लेखिका देबलीना मजूमदार की प्रशंसित जीवनी ‘साबू: द रिमार्केबल स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट एक्टर इन हॉलीवुड’ के फिल्म और टेलीविजन अधिकार ऑलमाइटी मोशन पिक्चर ने हासिल कर लिए हैं
यह जीवनी मैसूर के लड़के ‘साबू दस्तगीर’ की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो मैसूर के हाथियों के अस्तबल से निकलकर एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म स्टार बनता है।
ऑलमाइटी मोशन पिक्चर्स की निर्माता और अभिनेत्री ‘प्रभलीन संधू’ ने कहा कि साबू की कहानी को सच्चाई से पर्दे पर लाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “साबू की कहानी को भव्यता और सच्चाई के साथ लोगों के सामने लाना चाहिए। वह सिर्फ भारत के पहले वैश्विक सितारे ही नहीं थे, बल्कि वह महाद्वीपों, संस्कृतियों और युगों के बीच एक सेतु थे। उनकी कहानी को पर्दे पर लाना फिल्म निर्माण से कहीं बढ़कर है। यह एक ऐसी विरासत को संजोना है जिसे दुनिया कभी नहीं भूलेगी और यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे हम अपने दिलों के करीब रखते हैं।”
हाथी की देखभाल करने वाले महत के बेटे साबू एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी यात्रा वाकई असाधारण थी। ब्रिटिश शासित भारत से लेकर हॉलीवुड तक की उनकी यात्रा काफी शानदार रही, जिसमें उन्होंने कई सीमाओं को लांघकर हॉलीवुड में एक बड़ा नाम कमाया। उनका सफर महाद्वीपों, संस्कृतियों और युगों तक फैला हुआ था। हॉलीवुड में ‘एलिफेंट बॉय’ फिल्म में उनको बड़ा ब्रेक मिला था, जो 1937 में रिलीज हुई थी। इसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी अपने सेवाएं दी हैं।
साबू का जन्म 1924 को मैसूर के करपुरा में हुआ था, जो कि उस समय ब्रिटिश भारत की रियासत थी, उन्होंने 1937 में रुयार्ड किपलिंग की ‘द जंगल बुक’ के ‘टूमाई ऑफ द एलीफेंट्स’ पर आधारित फिल्म ‘एलिफेंट बॉय’ से अपने अभिनय की शुरुआत की थी। इस फिल्म से उनको अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, जिसका निर्देशन डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर ‘रॉबर्ट जे. फ्लेहर्टी’ ने किया था। इस फिल्म को पूरा करने का काम पर्यवेक्षक निर्देशक जोल्टन कोर्डा ने किया, और उन्हें इसके लिए वेनिस फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला। यह फिल्म लंदन फिल्म्स स्टूडियो, डेनहम और मैसूर में शूट की गई थी।
‘एलिफेंट बॉय’ के बाद, साबू ने कई हॉलीवुड क्लासिक फिल्मों में काम किया, इनमें ‘द थीफ ऑफ बगदाद’ (1940), ‘जंगल बुक’ (1942), ‘अरेबियन नाइट्स’ (1942) और ‘ब्लैक नार्सिसस’ (1947) जैसी फिल्में शामिल हैं। उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई और वे पूरब और पश्चिम के बीच एक सांस्कृतिक सेतू बन गए थे।
सिनेमा में उनके खास योगदान को देखते हुए, उन्हें 1960 में हॉलीवुड ‘वॉक ऑफ फेम’ में जगह मिली, दुख की बात यह की 1963 में 39 की उम्र में दिल का दौरा पड़ने की वजह से साबू का अचानक निधन हो गया था।