नई दिल्ली, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पदभार संभालने के बाद से पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों में उल्लेखनीय बदलाव आया है।
पुणे स्थित फ्लेम यूनिवर्सिटी में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कूटनीतिक कोशिशों पर प्रकाश डाला, जिससे उन देशों के साथ संबंध मजबूत हुए, जो ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ कम जुड़े थे। इनमें एक उदाहरण संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का है, जहां 2015 में पीएम मोदी ने यात्रा की थी यह दिवंगत इंदिरा गांधी के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहला दौरा था।
जयशंकर ने कहा कि यूएई की निकटता के बावजूद, उससे जुड़ने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए।
विदेश मंत्री के मुताबिक भारत का अपने पड़ोसियों के साथ एक जटिल इतिहास रहा है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने देशों को नई दिल्ली के साथ अपने रिश्तों पर फिर से सोचने को प्रेरित किया है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर।
जयशंकर ने कहा, “देश अपने रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि कई पड़ोसी देशों ने अपने फायदे के लिए चीन की ओर रुख किया।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत की उभरती हुई आर्थिक शक्ति है और आने वाले वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
जयशंकर ने कहा कि चीन के साथ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सैनिकों की वापसी है और दूसरा मुद्दा तनाव कम करना है। उन्होंने कहा, “अगर मैं इसे थोड़ा पीछे ले जाऊं, तो 2020 से सीमा पर स्थिति खराब रही, जिसका चीन के साथ रिश्तों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा। सितंबर 2020 से हम समाधान खोजने के तरीके पर चीनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। समाधान के विभिन्न पहलू हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सैनिकों की वापसी है, क्योंकि सैनिक एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और किसी घटना की संभावना काफी है। इसलिए यह मुद्दों का पहला सेट है।’
विदेश मंत्री ने कहा, “इसके बाद तनाव कम करना है। फिर एक बड़ा मुद्दा यह है कि आप सीमा का प्रबंधन कैसे करते हैं और सीमाओं पर कैसे बातचीत करते हैं। अभी चीन में जो कुछ भी हो रहा है, वह पहले चरण के कारण हो रहा है, जो कि पीछे हटने का फेज है। हम भारत-चीन सीमा पर गश्त के मुद्दों पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे।”
Leave feedback about this