सीएसआईआर-हिमालयी जैवसंसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-आईएचबीटी), पालमपुर में सुगंधित और उच्च मूल्य वाली फसलों पर आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम ने जम्मू क्षेत्र के किसानों के लिए एक नया अध्याय जोड़ा। इस पहल का उद्देश्य सुगंधित, औषधीय और उच्च मूल्य वाली पुष्प फसलों की खेती के माध्यम से कृषि विविधीकरण और सतत आय सृजन को बढ़ावा देना था।
जम्मू के 30 से ज़्यादा किसान, जो पारंपरिक रूप से मुख्यतः आत्म-निर्वाह के लिए गेहूँ, मक्का, हल्दी, तिल और बाजरा उगाते हैं, इस कार्यक्रम में शामिल हुए। बंदरों के आतंक, मोर और जंगली सूअरों से होने वाले नुकसान और वर्षा आधारित कृषि परिस्थितियों से अक्सर जूझने वाले इन किसानों को टिकाऊ और लाभदायक फसलों के विकल्पों में नई उम्मीद दिखी।
अपने उद्घाटन भाषण में, सीएसआईआर-आईएचबीटी के निदेशक डॉ. सुदेश कुमार यादव ने उत्तर-पश्चिमी हिमालय में सुगंधित और उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने प्रतिभागियों को पूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता का आश्वासन दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी फसलें टिकाऊ खेती और मूल्य संवर्धन के माध्यम से ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती हैं।
मुख्य वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. राकेश कुमार ने जम्मू क्षेत्र के लिए उपयुक्त सुगंधित फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला पर प्रकाश डाला—जिनमें डैमस्क गुलाब, लेमनग्रास, तुलसी, पुदीना, सुगंधित गेंदा, कैमोमाइल और पामारोसा शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ये फसलें वर्षा आधारित परिस्थितियों में पनपती हैं, कीटों के हमलों का प्रतिरोध करती हैं, और अरोमाथेरेपी, सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य एवं औषधि जैसे क्षेत्रों में अपार औद्योगिक क्षमता रखती हैं।
डॉ. सनत्सुजात सिंह ने प्रतिभागियों को सीएसआईआर-आईएचबीटी द्वारा विकसित उच्च उपज देने वाली किस्मों से परिचित कराया और मूल्य संवर्धन तकनीकों तथा आसवन इकाइयों का उपयोग करके आवश्यक तेल निष्कर्षण के बारे में मार्गदर्शन दिया। किसानों ने संस्थान के पुष्प उत्पादन मिशन, खाद्य प्रसंस्करण प्रायोगिक संयंत्र और शिटाके मशरूम उत्पादन इकाई का भी अवलोकन किया और उत्पाद विविधीकरण तथा एकीकृत कृषि पद्धतियों का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।