धर्मशाला, 27 जुलाई कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती आज यहां राज्य युद्ध स्मारक पर भव्य तरीके से मनाई गई। इस अवसर पर योल 9वीं कोर के स्टेशन कमांडर ब्रिगेडियर जीएस पुरी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जबकि जिला प्रशासन, सैन्य अधिकारियों, पूर्व सैनिकों और विभिन्न संगठनों ने पुष्पांजलि अर्पित की।
देश के सैनिकों की अनुकरणीय बहादुरी को याद करते हुए ब्रिगेडियर पुरी ने कहा, “विजय दिवस पर शहीद हुए वीरों को श्रद्धांजलि दी जाती है। हिमाचल प्रदेश के पास देश की सुरक्षा और रक्षा में अपने सबसे बड़े योगदान पर गर्व करने का हर कारण है। आज के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए और इन युद्ध नायकों का अनुकरण करना चाहिए जिन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपना वर्तमान बलिदान कर दिया।”
दो महीने से ज़्यादा चले कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश के 52 जवानों ने अपनी जान कुर्बान की थी। 25 मई 1999 को शुरू हुए इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाज़ों ने अपनी जान कुर्बान कर दुश्मनों को देश की सीमाओं से खदेड़कर ऑपरेशन विजय को सफल बनाया था। इस युद्ध में देशभर के कुल 527 जवान शहीद हुए थे।
कारगिल युद्ध में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए देशभर में सेना के सर्वोच्च सम्मान के रूप में कुल चार परमवीर चक्र पदक घोषित किए गए थे। इन चार में से दो हिमाचल के वीरों के नाम पर हैं। इस महान युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र और सूबेदार संजय कुमार को जीवित परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
हिमाचल प्रदेश के जिन 52 सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनमें से 15 कांगड़ा जिले के थे, जबकि 11 मंडी जिले के, सात-सात हमीरपुर और बिलासपुर के, चार शिमला के, दो-दो ऊना, सोलन और सिरमौर के तथा एक-एक चंबा और कुल्लू जिले के थे।
राज्य सैनिक लीग के महासचिव कर्नल आरपी गुलेरिया (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उन्हें 1999 का कारगिल युद्ध आज भी याद है, जब देश के सैनिकों ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया था। “हमारी सेना ने पूरी बहादुरी के साथ मातृभूमि में घुस आए आक्रमणकारियों को हराया और 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर कब्जा कर लिया।”
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