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केरल नेनमारा हत्या मामला: अदालत ने चेंथमारा को दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई

Kerala Nenmara murder case: Court sentences Chenthamara to double life imprisonment

नेनमारा पोथुंडी सजिता हत्याकांड में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल अदालत ने शनिवार को एकमात्र आरोपी चेंथमारा को दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह सजा सजिता हत्या (2019) से संबंधित है।

आजीवन कारावास के साथ-साथ, अदालत ने कुल 4.75 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। पलक्कड़ की चतुर्थ अतिरिक्त सत्र अदालत ने पाया कि चेंथमारा के अपराध, हत्या के बाद सबूत खत्म करने की कोशिश, उसके अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है।

सबूतों से छेड़छाड़ के लिए उसे पांच साल की सजा और 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। ये सजाएं साथ-साथ चलेंगी। चेंथमारा ने अगस्त 2019 में नेनमारा स्थित सजिता के घर पर हमला किया था। कथित तौर पर उसे सजिता और उसके एक पड़ोसी पर शक था कि दोनों ने मिलकर चेंथमारा के परिवार में कलह पैदा की है।

उस समय, सजीता के बच्चे स्कूल गए हुए थे और उसका पति तमिलनाडु गया हुआ था। इस मामले में जमानत मिलने के बाद, चेंथमारा ने 27 जनवरी को एक दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया। जेल से निकलने के बाद पति और सजिता की सास को भी बेदर्दी से मार डाला था। इसके बाद, अदालत ने उसकी जमानत रद्द कर दी।

अदालत में मौजूद सजिता के बच्चे, अतुल्या और अखिला, ने कहा कि वे फैसले से खुश हैं। दोनों बच्चियों ने कहा, “हम अदालत में थे और उसे देखकर डर लग रहा था। हम चाहते हैं कि उसे दोबारा जमानत न मिले।”

छह साल तक चले इस मुकदमे में 50 लोगों की गवाही शामिल थी, जिनमें चेंथमारा की पत्नी भी शामिल थी, जिसने पुष्टि की कि हत्या का हथियार घर पर रखा गया था और उसने उसे लंबे समय तक मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया था।

उपलब्ध साक्ष्य, फोरेंसिक रिपोर्ट और 30 से ज्यादा आधिकारिक दस्तावेज दोषसिद्धि सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण थे। परिवार के सदस्यों ने पहले ही आरोपियों की रिहाई पर अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की थी और अधिकतम सजा की मांग की थी।

इस फैसले के बाद, अधिकारी चेंथमारा के नेनमारा दोहरे हत्याकांड के लिए एक अलग मुकदमा शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। पलक्कड़ के पुलिस अधीक्षक अजित कुमार ने कहा कि दोहरे हत्याकांड का मुकदमा तेजी से आगे बढ़ रहा है।

चेंथमारा की हिंसक घटनाओं ने स्थानीय समुदाय को झकझोर कर रख दिया था। अदालत के इस फैसले से पीड़ित परिवारों को राहत मिली है, साथ ही पूर्वनियोजित और बार-बार होने वाले हिंसक अपराधों के मामलों में कानूनी ढांचे की जवाबदेही को भी बल मिला है।

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