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मध्य प्रदेश : 400 साल पुरानी पारंपरिक कला नंदना प्रिंट में प्राकृतिक रंगों का होता है इस्‍तेमाल, जल्द ही मिलेगा जीआई टैग

Madhya Pradesh: 400-year-old traditional art Nandana print uses natural colours, will soon get GI tag

मध्य प्रदेश के नीमच जिले का उम्मेदपुरा गांव अपनी पारंपरिक कला को आगे बढ़ा रहा है। हस्तशिल्प क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले इस गांव में 400 साल पुरानी नंदना प्रिंट कला से वस्त्र तैयार किए जाते हैं। इसमें 100 प्रतिशत प्राकृतिक रंगों और शुद्ध सूती कपड़ों का उपयोग होता है। अब इसके लिए जीआई टैग दिलाने की दिशा में काम हो रहा है।

उम्मेदपुरा के रहने वाले बनवारी जरिया और पवन जरिया दोनों भाइयों ने हस्तशिल्प की इस नंदन प्रिंट कला में राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। साथ ही दिल्ली में आयोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्व स्तरीय जी-20 समिट कार्यक्रम में भी विश्व भर से आए विदेशी मेहमानों के सामने अपनी इस प्राचीन कला को पेश करने का मौका मिला था। अभी दोनों भाइयों ने इस कला को विश्व पटल पर लाने के लिए जीआई टैग के लिए भी प्रक्रिया की हुई है जो अपनी पूर्णता की ओर है। विदेशी ग्राहक गांव तक आते हैं।

नंदना प्रिंट के प्रमुख कारीगर बनवारी जरिया ने बताया, “यह हमारा पुश्तैनी काम है और मैं 5वीं पीढ़ी का हूं। पूरा गांव पहले नंदना प्रिंट का काम करता था। नंदना प्रिंट एक ऐसी कला है, जो आदिवासी महिलाओं के लहंगे बनाते थे, ट्राइबल एरिया की महिलाएं इसे पहनती थीं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान की आदिवासी महिलाएं यही पहनती थीं। पहले पूरा गांव यही काम करता था, लेकिन अब 10-12 सालों से वहां वो बिकना बंद हो गया तो लोगों ने बनाना भी बंद कर दिया। अब मशीनरी युग और केमिकल का उपयोग होता है। बनवारी जर‍िया ने कहा क‍ि नंदना प्रिंट में पूरे 100 प्रतिशत प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो महंगा पड़ता है, अब हम भी अर्बन मार्केट के लिए साड़ी, कुर्ते, दुपट्टे, बेडशीट, सलवार सूट आदि बनाते हैं जो अच्छा बिकता भी है। इसमें पांच तरह की डिजाइन होती है। इसमें कलर कॉन्बिनेशन भी फिक्स रहता है और इसमें प्राकृत‍िक रंग ही इस्‍तेमाल किए जाते हैं। 18 स्टेप में यह कपड़ा गुजरता है और करीब 30 से 40 दिन का समय लगता है, तब जाकर नंदना प्रिंट तैयार होता है।”

नंदना प्रिंट के कारीगर पवन जरिया ने बताया, “नंदना प्रिंट एक 400 साल पुरानी कला है, जिसे आज भी हमने जीवित रखा है। देखा जाए तो यह कला अब विलुप्त हो रही है। पहले आदिवासी महिलाएं जो लहंगा पहनती थीं, वह नंदना प्रिंट का ही रहता था। लेकिन अब उन्होंने भी अपना पहनावा चेंज कर दिया है और हम भी साड़ी, सूट, बेड शीट, ड्रेस मटेरियल प्रिंट कर रहे हैं। मैंने 2017 में एक बेडशीट बनाई थी, जिसके लिए मुझे पीयूष गोयल जी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था। प्रधानमंत्री मोदी जी के जी-20 कार्यक्रम में भी मुझे आमंत्रित किया गया था। वहां पर भी मैंने अपनी कला दिखाई थी। वहां मैंने एक स्टॉल लगाई थी और डेमोंस्ट्रेशन दिया था। हमने जीआई टैग के लिए भी अप्लाई किया हुआ है और वह अभी प्रोसेस में है। हम चाहते हैं कि हमें जीआई टैग मिल जाए तो हमारी इस कला को पूरी दुनिया देख पाएगी, जो अभी विलुप्त हो रही है।”

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