N1Live National महाकुंभ 2025 : देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रखी जाएगी सम्राट अशोक के स्तंभ की रेप्लिका
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महाकुंभ 2025 : देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रखी जाएगी सम्राट अशोक के स्तंभ की रेप्लिका

Mahakumbh 2025: Replica of the pillar of Emperor Ashoka will be kept for the devotees coming from India and abroad.

प्रयागराज, 23 नवंबर । महाकुंभ में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को इलाहाबाद संग्रहालय, प्रयागराज, भारत के महान सम्राट अशोक के स्तंभ और उस पर लिखी सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति से परिचित कराने जा रहा है। महाकुंभ के महाआयोजन को अविस्मरणीय बनाने के लिए डबल इंजन की सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध नजर आ रही है।

इसी क्रम में संग्रहालय ने महाकुंभ के दौरान आगंतुकों के लिए अशोक स्तंभ की छोटी प्रतिकृति स्मृति चिह्न के रूप बनाने का फैसला किया है। जिससे देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ न केवल इसकी अलौकिक आभा को निहार सकें, बल्कि साथ ले जाकर उसकी ऐतिहासिकता का अनुभव भी कर सकेंगे।

इलाहाबाद संग्रहालय, प्रयागराज के डिप्टी क्यूरेटर डॉ. राजेश मिश्र कहते हैं कि सरकार के संकल्प को अमली जामा पहनाने और दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजन को नव्य, भव्य और अविस्मरणीय बनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं।

संग्रहालय भी इस अभियान में शामिल है। महाकुंभ के दौरान सम्राट अशोक के स्तंभ की रेप्लिका बनाकर देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रखा जाएगा। स्तंभ पर अंकित अभिलेख प्रयाग प्रशस्ति के नाम से इतिहास प्रसिद्ध है। इसमें सम्राट अशोक की पत्नी कारुवाकी का जिक्र मिलता है।

इसमें लिखा है कि सम्राट अशोक की पत्नी ने कौशांबी में बौद्धों को आम के बाग दान किए थे। इसके बाद सम्राट समुद्रगुप्त के अभिलेख मिलते हैं। यह अभिलेख चम्पू शैली और संस्कृत भाषा में उकेरे गए हैं। सम्राट समुद्रगुप्त के सान्धिविग्रहिक हरिषेण ने इसे चम्पू शैली में लिखवाया था। जिसमें गद्य व पद्य दोनों विधा शामिल हैं। इस स्तंभ में सम्राट समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का विशेष रूप से वर्णन किया गया है।

अखंड भारत की कल्पना को सबसे पहले साकार करने वाले सम्राट के रूप में समुद्रगुप्त को ही जाना जाता है। लगभग चौथी शती ईस्वी में प्रयाग प्रशस्ति में सम्राट समुद्रगुप्त की विजय गाथा का वर्णन किया गया है। समुद्रगुप्त को ऐसे योद्धा के रूप में जाना जाता है, जिसे कोई भी युद्ध में नहीं हरा सका है। अखंड भारत के निर्माण के लिए ही समुद्रगुप्त ने ये सभी युद्ध किए थे।

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