नई दिल्ली, 22 अगस्त । लोकसभा चुनाव के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है। तीन दलों के त्रिकोण के ईद-गिर्द सिमटी हुई बिहार की सियासत में इन दिनों ब्राह्मण समाज की हिस्सेदारी केंद्र में है।
आरजेडी के वरिष्ठ नेता मनोझ झा से लेकर जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और अब मनन कुमार मिश्रा इसकी मिसाल हैं।
दरअसल, मनन मिश्रा को भाजपा ने राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। न्यायपालिका के क्षेत्र में मनन कुमार मिश्रा एक चर्चित चेहरे हैं। सात बार बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआई) के चेयरमैन निर्वाचित होने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है। सामाजिक गतिविधियों में अपनी सक्रियता बरकरार रखने वाले मनन कुमार मिश्रा को उच्च सदन भेजकर भाजपा ने एक तीर से कई निशान साधे हैं।
सियासी चर्चाओं की मानें तो लोकसभा चुनाव में अश्विनी चौबे का टिकट काटे जाने से ब्राह्मण समाज में नाराजगी की खबरें सुर्खियां बन रही थी। ब्राह्मण समाज का एक तबका दबे स्वर में भाजपा आलाकमान के इस फैसले पर सवाल उठा रहा था। ऐसे में भाजपा ने बड़ा सियासी दांव चलते हुए मनन मिश्रा को उच्च सदन भेजने का फैसला किया है, जिससे ब्राह्मण समाज को एक सियासी संदेश दिया जा सके।
दरअसल, बिहार से आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा पुरजोर और तार्किक तरीके से सदन में अपनी पार्टी का पक्ष रखते हैं। ऐसे में मनन मिश्रा का राज्यसभा जाना भाजपा के लिए बैद्धिक मोर्चे पर फायदा का सौदा रहने वाला है। मनन मिश्रा का राज्यसभा में आगमन पार्टी के वैचारिक एजेंडे को धार देने के साथ-साथ सरकार की नीतियों और योजनाओं के प्रबल पैरोकार के रूप में हो सकती है।
कांग्रेस पार्टी में वकीलों की बड़ी संख्या सड़क से लेकर सदन तक वैचारिक विमर्श को गढ़ने की अहम भूमिका निभाते हैं। इस कड़ी में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, विवेक तन्खा से लेकर तमाम ऐसे दिग्गज वकील हैं, जो कांग्रेस पार्टी के लिए ढाल बनते रहे हैं। ऐसे में मनन मिश्रा राज्यसभा में भाजपा के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा सकते हैं।
सरकार के साथ-साथ पार्टी के कानूनी मोर्चें पर भी मनन मिश्रा की उपयोगिता साबित हो सकती है। राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर बिहार की पहचान मंडल और कमंडल के सियासी प्रयोग के तौर पर होती रही है। हाल के दिनों में जो तस्वीर उभरकर सामने आई है, उसमें ब्राह्मण समाज मुख्यधारा में नजर आ रहा है।
बिहार की सियासत में ब्राह्मणों का वर्चस्व कोई नई बात नहीं। बिहार में 1961 से 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए। लेकिन, मंडल की राजनीति ने एक नई परिभाषा दी, जिसमें ओबीसी समाज के कई बड़े नेता सत्ता की धुरी बने। बिहार में कांग्रेस पार्टी के पतन के बाद मंडल राजनीति के दौर में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षेत्रीय नेताओं का उदय हुआ, जो आज की मौजूदा सियासत में प्रासंगिक बने हुए हैं।
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