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नालागढ़ में बनने वाला मेडिकल डिवाइस पार्क प्रगति पर नहीं

Medical device park to be built in Nalagarh is not progressing

राज्य गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है, लेकिन सरकार ने अपने संसाधनों से मेडिकल डिवाइस पार्क बनाने और केंद्र सरकार को करीब दो साल पहले मिले 30 करोड़ रुपये वापस करने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने 350 करोड़ रुपये की मेडिकल डिवाइस पार्क परियोजना के लिए अब तक 74.95 करोड़ रुपये जारी किए हैं, लेकिन फंड की कमी के कारण इसका क्रियान्वयन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

250 करोड़ रुपये का ऋण जुटाया जाएगा उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि परियोजना को पूरा करने के लिए बैंक से 250 करोड़ रुपये का ऋण लिया जाएगा। निर्धारित समय से पीछे चल रही राज्य सरकार परियोजना शुरू होने के लगभग दो साल बाद भी अभी तक निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाई है और संभावित निवेशकों को भूखंड आवंटित नहीं कर पाई है। भूखंड आवंटन के लिए नीति अभी तक नहीं बनी है

प्रयोगशालाओं, कारखानों आदि की स्थापना जैसे प्रमुख कार्य अभी शुरू होने बाकी हैं क्योंकि केवल भूखंडों का चयन किया जा रहा है यह पार्क नालागढ़ उपमंडल के मंझोली ग्राम पंचायत के घीड़ और तेलीवाल गांवों में 1,623 बीघा भूमि पर बनाया जा रहा है। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राज्य सरकार ने उद्योगपतियों को एक रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीन, तीन रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली और 10 साल तक बिना किसी शुल्क के पानी, रखरखाव और गोदाम की सुविधा उपलब्ध करानी है।

हालांकि सरकार का मानना ​​है कि चूंकि पार्क में बनने वाले ज्यादातर उपकरण राज्य से बाहर बेचे जाएंगे, इसलिए इससे राज्य के खजाने को राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) का सीधा नुकसान होगा। इसलिए इस बाध्यता से निपटने के लिए राज्य के अपने संसाधनों से मेडिकल डिवाइस पार्क बनाने का फैसला लिया गया है। इस पार्क से राज्य को आने वाले पांच से सात सालों में 500 करोड़ रुपये का फायदा होने की उम्मीद है।

हिमाचल प्रदेश में किसी भी तरह के वित्तीय प्रोत्साहन के अभाव में निवेशक निवेश करने के लिए उत्सुक नहीं हैं। पिछले तीन सालों में राज्य के 20 औद्योगिक क्षेत्रों में केवल दो इकाइयां स्थापित होना इस बात की पुष्टि करता है। केंद्र प्रायोजित उत्पाद-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत एक इकाई स्थापित की गई है। इसे पांच साल के लिए बिजली शुल्क से 100 प्रतिशत छूट, पांच साल के लिए ऊर्जा शुल्क पर 15 प्रतिशत छूट, स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क पर 100 प्रतिशत छूट के अलावा यहां परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से रियायती भूमि भी दी गई है।

पहले से ही तय समय से पीछे चल रही राज्य सरकार परियोजना शुरू होने के लगभग दो साल बाद भी निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाई है और संभावित निवेशकों को भूखंड आवंटित नहीं कर पाई है। भूखंड आवंटित करने के लिए अभी नीति बनाई जानी बाकी है। निर्माण कार्य को संभालने वाले हिमाचल प्रदेश राज्य औद्योगिक निगम के सूत्रों का कहना है कि प्रयोगशालाओं, कारखानों आदि की स्थापना जैसे प्रमुख कार्य अभी तक शुरू भी नहीं हुए हैं, क्योंकि केवल भूखंड ही काटे गए हैं और कुछ बुनियादी ढांचे का काम चल रहा है।

उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान का कहना है कि इस परियोजना को साल के अंत तक पूरा करने के लिए जल्द ही 250 करोड़ रुपये का बैंक ऋण जुटाया जाएगा। चूंकि सब्सिडी वाली बिजली, भूमि और गोदाम के रखरखाव पर सब्सिडी जैसी देनदारियां राज्य के वित्त को खत्म कर देंगी, इसलिए राज्य के संसाधनों से परियोजना को विकसित करने का फैसला किया गया है।

हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजना के तहत पार्क परियोजना को मंजूरी दी गई थी, जिसके तहत हर राज्य को 100 करोड़ रुपये दिए जाते हैं। यह योजना चिकित्सा उपकरणों के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए शुरू की गई थी।

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