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लालू यादव के आलोचकों पर जमकर बरसीं मीसा भारती

Misa Bharti lashed out at Lalu Yadav's critics

पटना, 3 नवंबर । राष्ट्रीय जनता दल की नेता मीसा भारती ने रविवार को अपने पिता लालू प्रसाद यादव की आलोचना करने वालों पर जमकर निशाना साधा।

मीसा भारती ने कहा, “बिहार की राजनीति में 20 साल से चल रही चर्चाओं और आरोपों पर बात करते हुए यह स्पष्ट होता है कि कई नेता बिना तथ्यों के बयान देते हैं। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव जी, पर लगातार आरोप लगते आए हैं, जबकि उनके कामों और योगदानों की अनदेखी की जाती है। यह सही है कि बिहार में पिछले 20 वर्षों से डबल इंजन की सरकार है, जिसमें भाजपा और जदयू दोनों शामिल हैं। फिर भी, सवाल यह उठता है कि इन सरकारों ने बिहार में कितनी फैक्ट्रियां लगाई हैं और कितने लोगों को नौकरी के नियुक्ति पत्र दिए हैं।”

उन्होंने कहा, “तेजस्वी यादव द्वारा प्रस्तुत आंकड़े सरकारी आंकड़ों पर आधारित हैं, न कि किसी व्यक्तिगत स्रोत से। यह बात महत्वपूर्ण है कि लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में बिहार को कई विश्वविद्यालय मिले, और जब वह रेल मंत्री थे, तब उन्होंने राज्य में फैक्ट्रियों की स्थापना की। इस संदर्भ में, यह समझना जरूरी है कि राज्य की भलाई के लिए हमारी आवाजें दिल्ली में कितनी सुनाई देती हैं, खासकर जब हम विपक्ष में हैं।”

उन्होंने कहा, “जब केंद्र में मंत्री गिरिराज सिंह जैसे वरिष्ठ नेता बिहार के विकास पर बातें करते हैं, तो हमें यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने विभाग के माध्यम से बिहार के लिए क्या किया है। उदाहरण के तौर पर, भागलपुर और मोतिहारी जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?”

उन्होंने कहा, “हमारा देश भारत है, न कि पाकिस्तान, और हमें अपने प्रधानमंत्री और देश की जनता से डरने की आवश्यकता नहीं है। आम लोगों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर बात करते हुए लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में गोवर्धन पूजा के अवसर पर चिंता व्यक्त की थी। अगर हमें किसी घोटाले में दोषी पाया जाता है, तो हमें सजा देने की बात की जा सकती है, लेकिन यह कहना गलत है कि हम केवल आरोपों के चलते ही जूझ रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “यह स्वीकार करना होगा कि हमारी राजनीति में व्यक्तिगत गलतियों का नतीजा सभी को भोगना पड़ता है। सम्राट चौधरी जैसे नेता जिनकी पृष्ठभूमि विवादास्पद है, वे आज भी राजनीति में सक्रिय हैं। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि राजनीति में मूल्य और नैतिकता का क्या स्थान है।”

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