सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला), 2 अप्रैल, 2025 – पर्यावरणविद् और राज्यसभा सांसद पद्मश्री संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने आज संसद सत्र के दौरान बढ़ते नदी प्रदूषण पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
भारत की नदियों की भयावह स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया तथा उनकी शुद्धता बहाल करने के समाधानों पर चर्चा की।
संत सीचेवाल ने दुख व्यक्त किया कि आजादी के 75 साल बाद भी, गांवों, शहरों और कारखानों से निकलने वाले जहरीले कचरे से एक भी नदी अछूती नहीं है। उन्होंने केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की अपने कर्तव्यों में विफल रहने के लिए आलोचना की और उन्हें “केवल सफेद हाथी” कहा।
उन्होंने बताया कि 1974 का जल अधिनियम, जिसे मूल रूप से सख्त दंड के साथ प्रदूषण को रोकने के लिए बनाया गया था, समय के साथ कमजोर हो गया है, अब दंडात्मक प्रावधानों को हटा दिया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि इससे प्रदूषण फैलाने वालों का हौसला बढ़ा है और पर्यावरण अधिवक्ताओं को गहरी निराशा हुई है।
तीन प्रमुख प्रदूषक और विफल अधिकारी
संत सीचेवाल ने नदी प्रदूषण के तीन प्राथमिक स्रोतों की पहचान की:
- गांवों और शहरों से निकलने वाला कचरा
- उद्योगों से निकलने वाले विषैले रसायन
- खतरनाक अपशिष्ट जल निर्वहन
इसी तरह, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए तीन प्रमुख निकाय जिम्मेदार हैं:
- नगर निगम
- जल निकासी विभाग
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
हालाँकि, उन्होंने कहा कि ये प्राधिकारी नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल हो रहे हैं।
मजबूत कानून और जन भागीदारी का आह्वान
कानूनी प्रावधानों के कमजोर होने के बावजूद, संत सीचेवाल ने नदी प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने मांग की कि स्वच्छ जल, वायु और भोजन को मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी जाए और 1974 के जल अधिनियम को मजबूत और सख्त तरीके से लागू करने का आग्रह किया।
उन्होंने सुल्तानपुर लोधी के पास ब्यास नदी की सफाई को एक सफल मॉडल बताया, जिसे जन भागीदारी और सीचेवाल मॉडल के माध्यम से हासिल किया गया। यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इन प्रयासों को प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए दो बार सुल्तानपुर लोधी का दौरा किया था।
अधूरा मिशन: गंगा की सफाई
संत सीचेवाल ने गंगा एक्शन प्लान की अक्षमता पर भी सवाल उठाया, जिसके तहत 1985 से अब तक हज़ारों करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, फिर भी 2,525 किलोमीटर लंबी नदी को साफ करने में विफल रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक प्रदूषण को स्रोत पर रोकने के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं होगा और जनता की अधिक भागीदारी नहीं होगी, तब तक कोई भी धनराशि सफल नहीं होगी।
उन्होंने अधिकारियों से सीचेवाल मॉडल को पूरे देश में अपनाने का आग्रह किया तथा इस बात पर बल दिया कि केवल समुदाय द्वारा किए गए प्रयासों से ही भारत की पवित्र नदियों को उनकी पूर्व शुद्धता प्रदान की जा सकती है।
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