नई दिल्ली, 1 अगस्त । दिल्ली के भलस्वा, गाजीपुर व ओखला डंपिंग यार्ड को लेकर संसद में प्रश्न पूछे गए। राज्यसभा में गुरुवार को कहा गया कि ये डंपिंग यार्ड जनता के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों का जिक्र करते हुए राज्यसभा में आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने कहा कि आज गर्मियों की छुट्टी में दिल्ली वालों को हिल स्टेशन जाने की जरूरत ही नहीं है। दिल्ली में ही तीन बड़े-बड़े कूड़े के पहाड़ एमसीडी के सौजन्य से हम सबको मिले हुए हैं।
उन्होंने दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि एक कूड़े का पहाड़ माउंट भलस्वा है, एक माउंट गाजीपुर है और एक माउंट ओखला है। इन कूड़े के पहाड़ों के आसपास जो लोग रह रहे हैं, उन्हें बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यहां रहने वाले लोगों की हालत बहुत खराब है। यहां रहने वाले लोगों को गंदगी, बदबू और इस कूड़े से होने वाली बीमारियों से जूझना पड़ता है। इन कूड़े के पहाड़ों में कभी आग लग जाती है।
उन्होंने प्रश्न करते हुए कहा कि वह केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से यह जानना चाहती हैं कि क्या दिल्ली नगर निगम द्वारा केंद्र सरकार को कोई ऐसा प्रपोजल भेजा गया है, जिससे इन कूड़े के पहाड़ों से निजात पाई जा सके। उन्होंने साथ ही यह भी पूछा कि क्या केंद्र सरकार इस मामले में दिल्ली नगर निगम की जिम्मेदारी तय कर सकती है।
इसके जवाब में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि यह दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी है। यदि वह दिल्ली सरकार से पूछेगी तो अच्छा है। इस विषय पर सप्लीमेंट्री प्रश्न पूछते हुए समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने केंद्रीय मंत्री से कहा कि बात यह है कि दिल्ली सरकार की बागडोर आपके हाथ में है। आप अपनी जिम्मेदारी शिफ्ट मत कीजिए। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार कुछ ऐसे कदम उठाने जा रही है, जिससे कूड़े के इन स्थानों को रिहायशी स्थानों से दूर किया जा सके?
इसके जवाब में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि हमने 2016 में नियम बनाए हैं। लेकिन, इन नियमों के पालन करने वाली एजेंसी राज्य सरकार है। हमने पैसा भी प्रदान किया है। हम वायु प्रदूषण के साथ-साथ सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व जल प्रदूषण के लिए भी पैसा देते हैं। इसके बाद यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होती है। मानवीय बस्तियों के पास इस तरह के कूड़े के पहाड़ नहीं हो, इसके लिए हमेशा सिटी मैनेजमेंट प्लान होता है। लगातार कदम उठाए गए हैं। कई अन्य मामलों में लंबे समय से जो विषय लंबित पड़े थे, उन पर काम किया गया है।
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