जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) की मुंबई क्षेत्रीय इकाई ने डेटा विश्लेषण, मानव खुफिया और जांच उपकरणों के इस्तेमाल से बेनामी और शेल कंपनियों के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है।
इस रैकेट के मुख्य आरोपी जाहिर अब्बास पटेल और उनके भाई अकरम पटेल को 11 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया गया। यह कार्रवाई जीएसटी व्यवस्था में फर्जीवाड़े को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें करोड़ों रुपये का सरकारी राजस्व प्रभावित हुआ था।
डीजीजीआई अधिकारियों ने कई जगहों पर तलाशी अभियान चलाया। इसमें शामिल लोगों के बयान, बैंक स्टेटमेंट और दस्तावेजों की जांच से साफ हुआ कि जाहिर अब्बास पटेल ने अपने भाई अकरम के साथ मिलकर कई बेनामी कंपनियां बनाईं।
उन्होंने विभिन्न लोगों के नाम पर धोखाधड़ी से कंपनियां रजिस्टर की और उनके केवाईसी (नो योर कस्टमर) दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल किया। इन कंपनियों के नाम पर बिना किसी वास्तविक माल या सेवा की आपूर्ति के फर्जी बिल (चालान) जारी किए गए। इन फर्जी बिलों की कुल वैल्यू 141.30 करोड़ रुपये थी, जिसमें 27.10 करोड़ रुपये का जीएसटी शामिल था। इसका मकसद इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का गलत फायदा उठाना था, जिससे सरकार को भारी नुकसान हुआ।
आरोपियों ने लोगों को लालच देकर उनके दस्तावेज लिए और कंपनियां खोली। ये कंपनियां केवल कागजों पर थीं, कोई वास्तविक व्यापार नहीं होता था। फर्जी चालानों से पैसे का हेरफेर किया जाता था, जो टैक्स चोरी का बड़ा नेटवर्क था। गिरफ्तारी के बाद दोनों भाइयों से पूछताछ जारी है।
वहीं, अधिकारियों ने बताया कि यह रैकेट लंबे समय से सक्रिय था और इसमें कई अन्य लोग शामिल हो सकते हैं। तलाशी में कई दस्तावेज, कंप्यूटर और बैंक रिकॉर्ड जब्त किए गए हैं।
यह मामला जीएसटी सिस्टम में शेल कंपनियों की बढ़ती समस्या को उजागर करता है। डीजीजीआई ने कहा कि आगे की जांच से रैकेट के अन्य सदस्यों का पता लगाया जाएगा। यदि अपराध साबित हुआ, तो आरोपी को कड़ी सजा हो सकती है।
साथ ही, मुंबई क्षेत्रीय इकाई के महानिदेशक ने बताया कि डेटा एनालिटिक्स ने इस रैकेट को पकड़ने में अहम भूमिका निभाई। भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों को तेज किया जाएगा। फिलहाल, दोनों आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं और जांच जारी है।
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