नई दिल्ली, 5 अगस्त । अयोध्या में 12 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप मामले में जब से सपा नेता मोईद खान का नाम आया है, तब से ही तमाम राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे हैं। अखिलेश यादव ने 3 अगस्त का पोस्ट किया। जिसमें उन्होंने इस मामले में डीएनए टेस्ट की वकालत की। अब अखिलेश के इस पोस्ट पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने संज्ञान लिया।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने अखिलेश के डीएनए वाले बयान पर आपत्ति जताई है। उन्होंने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि, 12 साल की लड़की का कई लोगों के द्वारा बलात्कार किया गया। जिसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हुई। अखिलेश यादव का बयान दिखाता है कि एक आदमी को पकड़ लीजिए और उनके प्यारे को छोड़ दीजिए।
उन्होंने कहा कि बहुत सोच-समझकर अखिलेश यादव ने यह बयान दिया है। जिससे आरोपी को बचाया जा सके। यहां बताते चलें कि अखिलेश ने पोस्ट में लिखा था कि कुकृत्य के मामले में जिन पर भी आरोप लगा है उनका डीएनए टेस्ट कराकर इंसाफ़ का रास्ता निकाला जाए न कि केवल आरोप लगाकर सियासत की जाए। जो भी दोषी हो उसे क़ानून के हिसाब से पूरी सज़ा दी जाए, लेकिन अगर डीएनए टेस्ट के बाद आरोप झूठे साबित हों तो सरकार के संलिप्त अधिकारियों को भी न बख्शा जाए। यही न्याय की मांग है।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष ने कहा कि अखिलेश यादव एक सांसद हैं और सांसद बच्चों के संरक्षण के लिए कानून बनाते हैं। बच्चे बहुत ही उम्मीद के साथ सांसद की ओर देखते हैं कि यह उनकी रक्षा करेगा। उसके बावजूद अखिलेश यादव का यह बयान उसी डीएनए का परिचायक है, जब उनके पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह यूपी में नाबालिग लड़कियों का बलात्कार होता था तो कहते थे, लड़के हैं इनसे गलती हो जाती है। जो डीएनए इस तरह के बयान देता था, आने वाली पीढ़ी ऐसे ही बयान दे रही है। देश के सांसदों को बच्चों के प्रति संवेदनशीलता के साथ सोचना चाहिए। कूट रचित बयानों से आरोपियों को बचाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।