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नेताजी ने रखी ‘आजाद हिंद सरकार’ की नींव, स्वतंत्रता की लड़ाई में निभाई अहम भूमिका

Netaji laid the foundation of 'Azad Hind Sarkar', played an important role in the freedom struggle

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने एक ऐसी फौज की स्थापना की, जो इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। 21 अक्टूबर 1943, ये वही तारीख है, जब सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आजादी से पहले सिंगापुर में अस्थायी सरकार की स्थापना की थी।

इसे ‘आजाद हिंद सरकार’ के नाम से जाना जाता है। नेताजी खुद इस सरकार के प्रमुख थे। नेताजी की इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन और इटली समेत कई देशों ने मान्यता दी थी। आजाद हिंद सरकार के गठन की वर्षगांठ के अवसर पर जानते हैं कुछ अनसुने पहलुओं के बारे में।

दरअसल, साल 1942 में ‘आजाद हिंद फौज’ का पहली बार गठन किया गया था। इस दौरान आजाद हिंद फौज ने भारत की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया। बताया जाता है कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर करीब 40,000 भारतीय महिला और पुरुष ‘फौज’ से जुड़े। इसके बाद इसे ‘आजाद हिंद फौज’ नाम मिला।

बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना की। उन्होंने इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष समेत कई पद अकेले ही संभाले। इसके अलावा एससी चटर्जी को वित्त विभाग, लक्ष्मी स्वामीनाथन को महिला संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई। साथ ही इस सरकार का अपना बैंक, करंसी और डाक टिकट भी बनाया गया।

कई देशों से ‘आजाद हिंद सरकार’ को मान्यता मिलने के बाद जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप उन्हें दे दिए। इस दौरान नेताजी ने अंडमान को नया नाम ‘शहीद द्वीप’ और निकोबार को ‘स्वराज्य द्वीप’ दिया। 30 दिसंबर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतंत्र भारत का ध्वज भी फहराया गया। इसी दौरान नेताजी ने सिंगापुर और रंगून में ‘आजाद हिंद फौज’ का मुख्यालय स्थापित किया।

21 मार्च 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आजाद हिंद फौज ने भारत की धरती पर दस्तक दी। हालांकि, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमलों के बाद जापान की हालत काफी खराब हुई। बाद में जापानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। यहीं से आजाद हिंद फौज कमजोर होने लगा। इसी बीच आजाद हिंद फौज के सैनिक और अधिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने 1945 में गिरफ्तार कर लिया।

आजाद हिंद फौज के गिरफ्तार सैनिकों और अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया। कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लों और मेजर शाहवाज खान पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। बाद में तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई।

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