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नेताजी की सीक्रेट सर्विस के जांबाज: कैप्टन कंवर सिंह दलाल का गुप्त युद्ध

On Netaji's secret service: Capt. Kanwar Singh Dalai's clandestine war.

गेस्टापो के प्रबंधन के तहत जर्मन सीक्रेट सर्विस ट्रेनिंग स्कूल में प्रशिक्षित होने से लेकर, सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत होने के दौरान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तिगत प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले और वायरलेस उपकरणों से लैस एक जापानी पनडुब्बी का उपयोग करके गुप्त रूप से भारत में प्रवेश करने जैसा कारनामा दिखाने वाले कैप्टन कंवल सिंह दलाल अपने आप में एक लीजेंड (किंवदंती) थे। 4 अगस्त 1920 को हरियाणा के झज्जर जिले के गांव मंडोठी में जन्मे, कैप्टन दलाल 1940 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे। वे लीबिया के मोर्चे पर लड़ने के लिए गए, जहां 1941 में जर्मन अफ्रीकी कोर द्वारा उन्हें अपनी बाकी यूनिट के साथ युद्ध कैदी बना लिया गया था।

जर्मनी पहुंचने पर, वे वहां नेताजी की उपस्थिति और भारतीय राष्ट्रीय सेना को बढ़ाने के उनके प्रयासों से परिचित हुए। दिसंबर 1941 में स्वेच्छा से इसका हिस्सा बनने के लिए और अपने दो महीने के प्रशिक्षण के बाद, उन्हें नेताजी द्वारा गुप्त सेवा प्रशिक्षण के लिए चुना गया और उसी के लिए बर्लिन भेजा गया।

अपने प्रशिक्षण के बाद उन्हें जापान जाने का आदेश मिला, जहां 1943 में उनकी मुलाकात नेताजी से हुई, जो पहले ही वहां आ चुके थे। दलाल सिंगापुर और फिर पिनांग चले गए, जहां उन्होंने आगे गुप्त सेवा प्रशिक्षण लिया और उन्हें कैप्टन के पद पर पदोन्नत किया गया।

अंत में, 1943 में, उन्होंने एक जापानी पनडुब्बी में नेताजी के निजी प्रतिनिधि के तौर पर भारत में प्रवेश किया।

वह अपने साथ वायरलेस उपकरण ले जा रहे थे और आईएनए के लिए हर दिन रंगून मुख्यालय में सूचना भेजने के लिए उन्होंने सैन्य और राजनीतिक जानकारी एकत्र करना शुरू कर दिया था।

उन्होंने कई महीनों तक अपनी गतिविधियों को जारी रखा, लेकिन अंतत: उन्हें एक सहयोगी द्वारा धोखा देने के बाद बॉम्बे सीआईडी ने गिरफ्तार कर लिया।

उनके बेटे राजेश दलाल के एक विस्तृत लेख के अनुसार, आईएनए कैप्टन को ब्रिटिश खुफिया ब्यूरो द्वारा पूछताछ के लिए दिल्ली लाया गया था। कैप्टन दलाल को लाहौर के शाही किले में भेजा गया, जहाँ उन्हें यातनाएं दी गईं और सात महीने बाद उन्हें फिर से मुकदमे के लिए दिल्ली लाया गया।

‘राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ के लिए युद्ध के समय ‘दुश्मन एजेंट अध्यादेश 3’ के तहत आरोपित, दलाल को मौत की सजा दी गई थी। उन्हें 14 नवंबर, 1945 को फांसी दी जानी थी, लेकिन महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के हस्तक्षेप पर उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

उन्हें नवंबर 1946 में लाहौर जेल से रिहा किया गया था। उनकी रिहाई के बाद, उन्हें आईएनए कल्याण अधिकारी के रूप में दिल्ली में आईएनए राहत और जांच समिति में नियुक्त किया गया था।

कैप्टन दलाल को बाद में जिला कमांडर एनवीसी रोहतक (डीएसपी के मानद रैंक के साथ) के तौर पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक स्वयंसेवी बल खड़ा किया, जिसने सरकार को कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद की। उनका निधन 4 अगस्त 2003 को हुआ था।

सुकांत दीपक –आईएएनएस

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