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सोहन सिंह जोश : गुरुद्वारा सुधार कार्यकर्ता, जिन्होंने स्वतंत्रता का ‘लाल’ सपना देखा

The gurdwara reforms activist who later dreamt of freedom in red.

अकाली नेता और गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के जाने-माने चेहरों में से एक सोहन सिंह जोश बाद में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। आजादी के इस योद्धा ने अपनी वसीयत में लिखा कि उनकी मृत्यु के बाद कोई भी धार्मिक समारोह नहीं किया जाए। उनकी अस्थियां रावी नदी में विसर्जित कर दी गईं।

12 नवंबर, 1898 को पंजाब के चेतनपुरा में एक किसान पिता के घर जन्मे, सोहन सिंह जोश, जिन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके, 1921 में शुरू हुए अकाली आंदोलन के सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रचार करने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की।

अकाली नेताओं की साजिश के मामले में मुकदमा चलाया गया और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए कारावास की सजा सुनाई गई। उसी दौरान जोश शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और शिरोमणि अकाली दल के सदस्य बन गए। वह अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य और अविभाजित पंजाब की पंजाब प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी थे।

पत्रकारिता जगत के उत्कृष्ट लेखकों में शुमार जोश को ब्रिटिश राज के खिलाफ अपनी राय रखने के लिए एक मंच मिला। वह ‘कीर्ति’ अखबार से जुड़े थे, जिसके लिए उन्होंने मास्को में प्रशिक्षित कम्युनिस्ट नेता भाई संतोख सिंह के साथ सहयोग किया।

1935 में इस अखबार का नाम ‘प्रभात’ रखा गया था। जोश इसके संपादक और प्रकाशक थे। दरअसल, भगत सिंह ने ‘कीर्ति’ के लिए तीन महीने काम किया था। उनके लेख आम तौर पर ‘रुकन उद दीन’ और ‘स्वतंत्र सिंह’ के नाम से प्रकाशित होते थे। बाद के वर्षो में उन्होंने कम्युनिस्ट पत्रों ‘जंग-ए-आजादी’ और ‘नवरी जमाना’ दैनिक का संपादन किया।

सन् 1928 में उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई और दिसंबर 1928 में उन्होंने कलकत्ता में आयोजित पहले अखिल भारतीय श्रमिक और किसान सम्मेलन की अध्यक्षता की। वह भगत सिंह और उनके दोस्तों द्वारा स्थापित नौजवान भारत सभा के लिए भी काम कर रहे थे, फरवरी 1929 में वह इसके अध्यक्ष चुने गए।

जोश मेरठ षडयंत्र केस में भी जेल गए थे। वह 1933 में रिहा हुए और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। सन् 1943 में एक नए कम्युनिस्ट अखबार ‘जंग-ए-आजादी’ के संपादक बने।

पंजाबी में लिखी उनकी किताबों में ‘बंगाली साहित्य दी वनगी’, ‘रुत नवियां दी ऐ’, ‘मेन रस यात्रा’, ‘पंजाबी बोल्ट ते भाषा विज्ञान’, ‘इक इंकलाब इक जीवनी’, ‘अकाली मोर्चियां दा इतिहास’, ‘कामगाता मारू’, ‘दा दुखंत’ और ‘भगत सिंह नल मेरियन मुलकतन’ शामिल हैं। उनकी लिखी किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ द हिंदुस्तान गदर पार्टी’, दो भागों (अंग्रेजी) में 1977-78 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने एक आत्मकथा, दो उपन्यास और कुछ कहानियां लिखीं जो अप्रकाशित हैं।

सोहन सिंह जोश का निधन 29 जुलाई 1982 को अमृतसर में हुआ था।

दुर्भाग्यवश, अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद उन्हें भुला दिया गया। उनके बेटे देविंदर सिंह जोश ने एक साक्षात्कार में कहा कि उनके पिता ने अलग-अलग पुरस्कारों से मिला सारा पैसा लोगों के कल्याण पर खर्च किया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन उचित इलाज नहीं हो पाया।

सुकांत दीपक –आईएएनएस

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