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भारतीयों के लिए मोटापे की नई परिभाषा में पेट की चर्बी और संबंधित बीमारियों पर फोकस

New definition of obesity for Indians focuses on belly fat and related diseases

एक नए अध्ययन में भारतीय डॉक्टरों ने भारतीय आबादी के लिए मोटापे की परिभाषा को नए सिरे से तैयार किया है। यह अध्ययन बुधवार को प्रकाशित हुआ, जिसमें एम्स दिल्ली के विशेषज्ञ भी शामिल हैं।

अब तक मोटापा परिभाषित करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का उपयोग होता था। लेकिन द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी में प्रकाशित इस नए शोध ने पेट के आसपास के मोटापे (एब्डॉमिनल ओबेसिटी) और उससे जुड़ी बीमारियों को परिभाषा का आधार बनाया है।

15 साल बाद आई इस नई परिभाषा का मकसद भारतीयों में मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को समझना और उनका समाधान ढूंढना है। पुरानी बीएमआई विधि केवल वजन और ऊंचाई के अनुपात पर निर्भर थी। लेकिन नए स्वास्थ्य आंकड़े बताते हैं कि पेट के आसपास की चर्बी (एब्डॉमिनल फैट) और इससे जुड़ी बीमारियां, जैसे डायबिटीज और दिल की बीमारियां, भारतीयों में जल्दी शुरू हो जाती हैं।

पेट के मोटापे को मुख्य कारक माना गया है, क्योंकि यह इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ा है और भारतीयों में अधिक पाया जाता है। मोटापे के साथ आने वाली बीमारियों, जैसे डायबिटीज और हृदय रोग, को परिभाषा में शामिल किया गया है। मोटापे से होने वाली शारीरिक समस्याएं, जैसे घुटनों और कूल्हों का दर्द या दैनिक कार्यों के दौरान सांस फूलना, भी ध्यान में रखी गई हैं।

एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. नवल विक्रम के अनुसार, “भारतीयों के लिए मोटापे की एक अलग परिभाषा बेहद जरूरी थी, ताकि बीमारियों का जल्दी पता लगाया जा सके और उनकी सही देखभाल की जा सके। यह अध्ययन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।”

फोर्टिस सी-डॉक अस्पताल के डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा, “भारत में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी। ये गाइडलाइंस पूरे देश के लिए उपयोगी और लागू करने में आसान हैं। इनसे मोटापे से जुड़ी बीमारियों का सही समय पर इलाज संभव होगा।”

नई गाइडलाइंस में मोटापे को दो चरणों में बांटा गया है, जो सामान्य और पेट के मोटापे दोनों को संबोधित करती है।

चरण 1 में शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है लेकिन अंगों के कार्यों या रोजमर्रा की सामान्य गतिविधियों पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि इस चरण में कोई रोग संबंधी समस्याएं नहीं हो सकती हैं, लेकिन यह चरण 2 में प्रगति कर सकती है, जिससे अन्य मोटापे से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।

चरण 2 मोटापे की एक एडवांस स्टेज है जिसमें पेट में वसा की अधिकता के साथ कमर का घेरा भी अधिक होता है। इसमें शारीरिक और अन्य अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। अधिक वजन के कारण घुटने का गठिया, या टाइप 2 मधुमेह की उपस्थिति जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

अध्ययन ने सुझाव दिया है कि नई श्रेणियों के अनुसार वजन घटाने की रणनीतियां तैयार की जाए, ताकि मोटापे से जुड़ी समस्याओं का प्रभावी समाधान हो सके।

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