N1Live National ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ थी पाकिस्तान की ‘भूल’, 1965 जंग में मिली शिकस्त, एक चरवाहे से पड़ोसी मुल्क हुआ चित्त
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‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ थी पाकिस्तान की ‘भूल’, 1965 जंग में मिली शिकस्त, एक चरवाहे से पड़ोसी मुल्क हुआ चित्त

'Operation Gibraltar' was Pakistan's 'mistake', it was defeated in the 1965 war, the neighboring country became happy with a shepherd

नई दिल्ली, 6 सितंबर । भारत के आगे पाकिस्तान की कभी नहीं चल पाई। कोशिश पूरी की पड़ोसी देश ने, लेकिन हर बार मात ही मिली। आजादी के बाद कबायलियों के जरिए खूब कोशिश की नाकाम रही, घुसपैठ से प्रवेश करना चाहा तो मुंह की खाई। जब देश का बेटा मोहम्मद दीन चीची जागीर जैसा हो तो भला दुश्मन कैसे अपनी चला सकता है!

6 सितंबर 1965, पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरने वाला दिन था। ये दिवस हमारे रणबांकुरों के ‘शौर्य की याद दिलाता है जिन्होंने पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ का मुंहतोड़ जवाब दिया था। उन्हें बगले झांकने पर मजबूर कर दिया और जिब्राल्टर पाक के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया। पाकिस्तान ने ही ये नाम चुना था आखिर ऐसा नाम क्यों सोचा? क्या था ये ऑपरेशन और एक चरवाहे ने ही कैसे किया डिकोड! आइए जानते हैं।

ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में करीब 30,000 घुसपैठियों के जरिए प्रवेश करने की नापाक रणनीति का नाम था। भुलावे में रखने के लिए उसने ‘जिब्राल्टर’ नाम चुना। इस्लामिक हिस्ट्री के गर्व की कहानी कहता है जिब्राल्टर। सदियों पहले पुर्तगाल और स्पेन पर मुस्लिम विजय की कहानी जुड़ी है बस इसको ही आधार बनाकर पाकिस्तान आगे बढ़ा। दरअसल, जिब्राल्टर पश्चिम की ओर बढ़ रही अरबी सेना का पहला बड़ा पड़ाव था। पाकिस्तानी हुक्मरान भ्रम में थे कि कुछ ऐसा ही यहां होगा। उन्हें लगता था कि कश्मीर के सहारे वो पूरे भारत को फतह कर लेंगे।

उसने सोचा तो यही था कि घुसपैठियों के कांधे पर चढ़कर वो कश्मीर हथिया लेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस ‘कोडनेम’ की हवा चरवाहे जागीर ने निकाल दी। पाकिस्तान को कश्मीर पर नियंत्रण हासिल करने की मंशा पर पानी फिर गया और उसे करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। जो चोरी छुपे करना चाहता था उसकी कलई खुली और 1965 का जंग हुआ जिसमें पाक चारों खाने चित्त हो गया।

‘फ़्रॉम कच्छ टू ताशकंद’ में फ़ारूख़ बाजवा ने लिखा है पाकिस्तान भारत में चालबाजी से विद्रोह की चिंगारी भड़काना चाहता था। असल में पाकिस्तान चाहता था कि इन घुसपैठियों के जरिए वो घाटी में सांप्रदायिकता के बीज बोए। बड़ी मुस्लिम आबादी को भारत सरकार के खिलाफ उकसाए और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ माहौल बनाए। प्लानिंग फुलप्रूफ थी जो धरी की धरी रह गई।

हुआ यूं कि अगस्त 1965 में पाक सैनिक गुलमर्ग में स्थानीय लोगों के भेष में गुलमर्ग पर ठिकाने बनाने लगे। जागीर चरवाहा था उसने देखा, उनके पास पहुंचा। कश्मीरी चरवाहे पर घुसपैठियों ने भरोसा कर लिया। अपनी करतूतों को अमली जामा पहनाने के लिए ‘फिरेन’ (कश्मीरी पोशाक) और टोपी मंगवा ली। जागीर समझ गया और सच्चे कश्मीरी का फर्ज अदा करते हुए पूरी खबर सेना और पुलिस तक पहुंचा दी। नतीजतन दुश्मन फिर फेल हो गया।

जिस जिब्राल्टर ऑपरेशन के लिए बड़े बड़े मंसूबे पाले थे वो मिट्टी में मिल गए। भारतीय सेना ने अद्मय साहस का परिचय दिया और दुश्मन सेना को बैरंग लौटा दिया। इस जीत के बाद एक आम कश्मीरी चरवाहा खास बन गया उसे पद्म श्री से नवाजा गया।

सेवानिवृत्त पाकिस्तानी जनरल अख्तर हुसैन मलिक ने कहा था, ऑपरेशन जिब्राल्टर का उद्देश्य “भारतीय संकल्प को कमजोर करना और सामान्य युद्ध को भड़काए बिना भारत को सम्मेलन की मेज पर लाना” था।

लेकिन इस ऑपरेशन को हमारी सेना ने एक आम कश्मीरी की मदद से कुचल कर रख दिया। युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को करारी हार का सामना भी करना पड़ा।

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