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अंग्रेजी के चलते हमारी संस्कृति को नुकसान हुआ, भाषा में मिठास कम हुई : पंडित छन्नूलाल मिश्रा

Our culture has suffered due to English, sweetness in the language has reduced: Pandit Chhannulal Mishra

नई दिल्ली, 3 अगस्त । “ऐ हवाओं मजारों पर रुक कर जाना, झुक कर जाना। लुट कर, मिट कर भी जाना, मस्ती में सोया है कोई दीवाना। ऐ हवाओं मजारों पर उनके रुक कर जाना झुक कर जाना”। शास्त्रीय संगीत के दिग्गज गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा का यह गीत-संगीत आज भी लोगों की जुबान पर है। 88 साल के छन्नूलाल मिश्रा को शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाजा गया है।

आज छन्नूलाल मिश्रा अपना 88वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनकी उपलब्धियों पर गौर किया जाए तो छन्नूलाल मिश्रा को उत्तर प्रदेश सरकार से कई पुरस्कार मिल चुके हैं। शास्त्रीय संगीत के अलावा उन्होंने हिन्दी फिल्म ‘आरक्षण’ में गाना गया। यह गीत फिल्म अभिनेता सैफ अली खान और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पर फिल्माया गया था।

छ्न्नूलाल मिश्रा साल 2014 में वाराणसी सीट से चुनाव लड़ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी रह चुके हैं। आज देशभर में उनके सैकड़ों शिष्य हैं। वह देश-विदेश में कई सौ कार्यक्रम कर चुके हैं।

बॉलीवुड के बिग बी अमिताभ बच्चन के घर में उनके गाए शास्त्रीय संगीत के कसेट्स आज भी बजते हैं। हालांकि, 88 साल की उम्र में इतना नाम कमाने के बाद भी उन्हें अंग्रजी भाषा नहीं आती, लेकिन उन्हें इस बात का दुख नहीं है। छन्नू लाल मिश्रा का मानना है कि इस भाषा के आने से हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचा है।

पंडित छन्नूलाल मिश्रा बताते हैं कि बचपन बहुत गरीबी में बीता। पिताजी 10 रुपये का मनीऑर्डर देते थे। इतने पैसे में सप्ताह दिन तक 14 लोग खाना खाते थे। दाल चावल के लिए तरस जाते थे, रोटी और इमली की चटनी खाकर हमने रियाज किया है। इस पर पिताजी मारते थे, ठीक से गाओ नाम कैसे होगा।

वो कहते हैं, जब से अंग्रेजी आई तब से उत्तर प्रदेश की संस्कृति नष्ट हो गई। संगीत, साहित्य और कला इन्हीं तीनों से संस्कृति बनती है। अंग्रेजी आने से हमारी संस्कृति में कमी आई। लखनऊ की भाषा में पहले कितनी मिठास थी, आज वह दूर हो गई, अब अंग्रेजी में ही बात कर रहे हैं। अंग्रेजी हम खुद नहीं समझ पाते हैं। हमारे समय में अंग्रेजी नहीं थी, अब वह छा गई है। हमारी भाषा पीछे चली गई। ऐसा नहीं होना चाहिए।

बचपन की बातों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि 5 साल की उम्र में पिताजी सुबह उठा देते थे। 10 रुपये का हारमोनियम खरीदा था। जब नींद आती थी तो पिताजी थप्पड़ मारते थे। बनारस घराना ठुमरी के लिए काफी प्रसिद्ध हुआ। ठुमरी को बनारस का घराना बना दिया। उन दिनों तबला का घराना और ठुमरी का घराना होता था। 30 साल की उम्र में बिहार के मुजफ्फरपुर में हमारा बहुत बड़ा कार्यक्रम था। इलाहाबाद रेडियो स्टेशन पर प्रोग्राम किया। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ।

बनारस के होने के बावजूद वो किराना घराना के गायक हैं।

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