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माता-पिता और समाज को बाल अधिकारों के लिए सहयोग करना चाहिए: न्यायमूर्ति ठाकुर

Parents and society should cooperate for child rights: Justice Thakur

माता-पिता को अपने बच्चों के उचित पालन-पोषण पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह न केवल माता-पिता का कर्तव्य है, बल्कि बाल अधिकारों का एक अभिन्न अंग भी है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में विधि विभाग द्वारा आयोजित ‘बाल मानवाधिकार: उभरते मुद्दे और चिंताएँ’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान न्यायमूर्ति एसएस ठाकुर ने इस बात पर जोर दिया।

न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि बाल मानवाधिकारों से संबंधित कानूनों के सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार, समाज और अभिभावकों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने बच्चों को इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों से बचाने और भारतीय संस्कृति पर आधारित मूल्यों को विकसित करने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 1989 के अपने सम्मेलन में बच्चों के अधिकारों का एक चार्टर स्थापित किया था, जिसे 192 देशों ने मंजूरी दी है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर और विधि विभाग के अध्यक्ष एवं डीन प्रोफेसर राजिंदर वर्मा ने अपने संबोधन में इस बात पर प्रकाश डाला कि बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून होने के बावजूद भी उनका उल्लंघन होता रहता है। उन्होंने कहा, “इन कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी आपस में सहयोग करें और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें।”

विज्ञापनउन्होंने आगे बताया कि बाल अधिकारों के उल्लंघन को रोकना केवल कानूनी ढांचे पर निर्भर नहीं हो सकता; इसके बजाय, सामाजिक सहयोग के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

उद्घाटन सत्र की मुख्य वक्ता, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू) शिमला की कुलपति प्रोफेसर प्रीति सक्सेना ने आंकड़ों और उदाहरणों के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चा की।

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