N1Live National भ्रष्टाचार पर भारी, चुटकियों में फैसला जैसी प्रशासनिक क्षमताओं के धनी हैं पीएम मोदी के एडवाइजर अमित खरे
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भ्रष्टाचार पर भारी, चुटकियों में फैसला जैसी प्रशासनिक क्षमताओं के धनी हैं पीएम मोदी के एडवाइजर अमित खरे

PM Modi's advisor Amit Khare is heavy on corruption and has administrative abilities like taking decisions in a jiffy.

रांची, 15 जून । ‘किसी मुद्दे पर बहुत विश्लेषण करोगे तो निर्णय लेने की क्षमता को लकवा मार देगा।’ यह बात आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर कुच्छल ने एमबीए की किसी क्लास में कही तो एक छात्र ने इसे अचूक मंत्र की तरह गांठ में बांध लिया।

फिर क्या था, उस छात्र ने विषम परिस्थितियों में भी त्वरित निर्णय लेने की क्षमता अपने अंदर इस तरह विकसित कर ली कि उसने अपने पूरे करियर में शानदार सफलताएं हासिल की। यह कहानी है अमित खरे की, जिन्हें लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एडवाइजर नियुक्त किया गया है।

अमित खरे बिहार-झारखंड कैडर के 1985 बैच के रिटायर्ड आईएएस हैं। उन्हें पहली बार अक्टूबर 2021 में दो साल के लिए पीएम मोदी का एडवाइजर नियुक्त किया गया था। इसके बाद 2023 में फिर से उनके कार्यकाल का विस्तार किया गया था। केंद्र में शिक्षा विभाग के सचिव के रूप में ‘नई शिक्षा नीति’ बनाने में अमित खरे की अहम भूमिका रही है। उन्हें बिहार-झारखंड में बहुचर्चित 940 करोड़ के चारा घोटाले को उजागर करने वाले अफसर के रूप में सबसे ज्यादा याद किया जाता है।

पीएम के सलाहकार के रूप में अब तक के करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल के पहले उनका भारतीय प्रशासनिक सेवा में 36 सालों का करियर बेहद शानदार रहा है। वर्ष 1996 में झारखंड के चाईबासा जिले के उपायुक्त के तौर पर जब पशुपालन विभाग में सरकारी राशि की गलत तरीके से निकासी की एक शिकायत मामूली तौर पर मिली थी, तो उन्होंने खुद इसकी तत्काल जांच की। इसके पहले के उपायुक्तों को भी ऐसी शिकायतें मिली थीं, लेकिन किसी ने गौर नहीं किया।

खरे ने पहली नजर में ही भांप लिया कि यह बड़ी गड़बड़ी है और इसमें ‘बड़े’ लोगों की संलिप्तता है। उन्होंने पशुपालन विभाग की ओर से ट्रेजरी में भेजे गए तमाम बिल रुकवा दिए। ब्लॉक के अफसरों को भी अलर्ट किया। गड़बड़ियों को अंजाम देने वाले अफसरों, सप्लायरों को भनक मिली तो उन्होंने फाइलें नष्ट करने की कोशिश की पर अमित खरे चौकस थे। उन्होंने विभाग के अफसरों को तलब किया तो वो कार्यालय छोड़कर भाग खड़े हुए। उन्होंने कुछ घंटों के भीतर पशुपालन विभाग के कार्यालय को सील कर दिया। जिला कोषागार और बैंक को निर्देश दिया गया कि पशुपालन विभाग के किसी भी बिल का भुगतान न करें। सभी पुलिस थानों को सतर्क कर दिया कि कोई पशुपालन विभाग के दस्तावेजों को नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

जाहिर है, कार्रवाई में देर होती तो अमित खरे पर घोटालेबाजों को संरक्षण देने वाले राजनेताओं और बड़े अफसरों का दबाव पड़ सकता था। खैर, चाईबासा में पशुपालन घोटाले की पहली एफआईआर हुई तो दूसरे जिलों में भी ऐसी गड़बड़ियां पकड़ी जाने लगी। लालू प्रसाद यादव सहित कई लोग इसी घोटाले के सजायाफ्ता हैं।

रांची के हिनू स्थित सेंट्रल स्कूल से मैट्रिकुलेशन, सेंट स्टीफंस कॉलेज नई दिल्ली से फिजिक्स में ग्रेजुएशन और अहमदाबाद से मैनेजमेंट में पीजी करनेवाले अमित खरे ने बिहार का विभाजन होने के बाद झारखंड कैडर चुना था। आईएएस चुने जाने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग लातेहार में एसडीओ के रूप में हुई थी। बाद में चाईबासा के उपायुक्त के पद पर भेजे गए तो उन्होंने डायन प्रथा की आड़ में महिलाओं की प्रताड़ना के खिलाफ गांव-गांव में एक बड़ा अभियान शुरू किया।

हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने भी उनके काम की सराहना की थी। मेधा घोटालों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले बिहार में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पारदर्शी परीक्षा प्रणाली स्थापित करने का श्रेय अमित खरे को ही जाता है। उनके ही प्रयासों से बिहार में 1997 में मेडिकल और इंजीनियरिंग की संयुक्त प्रवेश परीक्षा शुरू हुई थी। झारखंड में शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी उन्होंने सिस्टम दुरुस्त करने के लिए जो कदम उठाए, उसकी चर्चा आज भी होती है।

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