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प्रसून जोशी, ‘तारे जमीन पर लाने’ वाला गीतकार जिसकी कैंची का खौफ बड़े बड़ों को

Prasoon Joshi, the lyricist of 'Taare Zameen Par Laane' whose scissors scare even the elders

नई दिल्ली, 16 सितंबर । गोविंद निहलानी हों, शाहरुख या फिर कंगना रनौत सब इंसानी रिश्तों को सहेजने की जुगत में भिड़े गीतकार, लेखक, क्रिएटर की कैंची से खौफ खाते हैं। कैंची जब चलती है तो संबंधों को तरजीह नहीं देती, ख्याल रखती है तो बस मोरल वैल्यूज यानि नैतिक मूल्यों का। इनका नाम है प्रसून जोशी। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्में प्रसून 16 सितंबर को अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं।

मानवीय भावनाएं, जीवन का सार और अपने लक्ष्य को पाने के लिए जी जान से जुटने की ललक जगाते हैं प्रसून जोशी के लिरिक्स। पद्म श्री से सम्मानित इस कवि को किसी एक खाके में फिट करना ज्यादती होगी। यह एक बड़ी कंपनी के सीईओ भी हैं और सालों से सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। फिल्मी परिवार में रचे बसे हैं इनको खास पहचान भी इन्हीं फिल्मों ने दी लेकिन जब उस कुर्सी पर बैठे तो मुरव्वत नहीं की। जो गलत लगा उसे गलत कहा और जो सही लगा उसके साथ डट कर खड़े भी रहे।

एड वर्ल्ड से करियर शुरू किया। क्रिएटिविटी मानो खून में बसी थी। मां पॉलिटिकल साइंस की लेक्चरर थीं तो पिता शिक्षा विभाग में पदस्थ। माता पिता दोनों शास्त्रीय संगीत में पारंगत। अब ऐसे में भला प्रसून कहां पीछे छूटते उन्होंने भी रचनात्मकता को अपना शगल बना लिया।

पहली किताब तब छपी जब मात्र 17 साल के थे। नाम था “मैं और वो”। प्रेरणा ली फ्रेडरिक नेट्जे की किताब दस स्पेक जराथुस्त्रे। फिर पढ़ाई पूरी की और एड वर्ल्ड में एंट्री मारी। कई कैम्पेन गढ़े।

हिंदी सिने जगत में धमाकेदार एंट्री लज्जा से की। गाने पसंद किए गए। समीर के साथ बोल रचे। फिर तो गाड़ी ने रुख फिल्मी दुनिया की ओर भी किया। एक से बढ़कर एक गाने लिखे। खासियत ये कि भाषा संयंमित, सहज और भौंडेपन-अश्लीलता से कोसो दूर। मानवीय संवेदनाओं को कुरेदते गीतों ने सुनने वालों के दिलों में खास मुकाम बना लिया। तारे जमीं पर, रंग दे बसंती, भाग मिल्खा भाग और ऐसे कई गीत जो सुनने वालों को अलग ही दुनिया की सैर करा जाते हैं।

तारे जमीन पर के ‘तुझे सब है पता मेरी मां’ और चटगांव के ‘बोलो ना’ के लिए दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी हुए। कई फिल्मफेयर अवॉर्ड भी अपने नाम किए। 2006 में, उन्हें फोरम ऑफ यंग ग्लोबल लीडर्स द्वारा ‘यंग ग्लोबल लीडर 2006’ चुना गया और 2007 में, 2008 में उन्हें कान्स जूरी के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया और 2009 में, उन्हें कान्स लायंस इंटरनेशनल एडवरटाइजिंग फेस्टिवल 2009 में 10 सदस्यीय कान्स टाइटेनियम और इंटीग्रेटेड जूरी 2009 में नामित किया गया।

11 अगस्त 2017, से सेंसर बोर्ड यानि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए। अब तक जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कइयों ने उंगली उठाई तो कइयों ने आंखें भी लेकिन धुन के पक्के प्रसून आगे बढ़े जा रहे हैं। उनकी एक कविता है ‘खुल के मुस्कुराले तू’। प्रसून लिखते हैं- झील एक आदत है , तुझमें ही तो रहती है और नदी शरारत है तेरे संग बहती है उतार ग़म के मोज़े ज़मीं को गुनगुनाने दे, कंकड़ों को तलवों में गुदगुदी मचाने दे।

इसमें प्रकृति से प्रेम का भाव है तो जीवन की पथरीली डगर पर चलने का रोमांच को भी स्पर्श करती है और ध्यान से पढ़ें तो जीवन का दर्शन समझाती है। कविता के माध्यम से यही किस्सागोई प्रसून को सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर जाती है।

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