चंडीगढ़, 2 अगस्त पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने झूठी यौन उत्पीड़न शिकायतें दर्ज करने के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आह्वान किया है तथा इस बात पर जोर दिया है कि निर्दोष पीड़ितों की रक्षा करने और गलत आरोपों को रोकने के लिए ऐसी प्रथाओं पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।
यह बात न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बराड़ द्वारा यह स्पष्ट किए जाने के बाद कही गई कि जांच एजेंसी को ऐसे मामलों में शिकायतकर्ताओं पर मुकदमा चलाने में संकोच नहीं करना चाहिए।
पीठ ने जोर देकर कहा, “अदालत झूठे आरोपों के ऐसे स्पष्ट रूप से तुच्छ और परेशान करने वाले मामलों पर मूक दर्शक बनकर नहीं रह सकती। वास्तव में, अदालत का कर्तव्य है कि वह निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए ऐसे मामलों को अतिरिक्त सावधानी और जांच के साथ देखे।”
न्यायमूर्ति बरार ने हरियाणा के डीजीपी को महिला की साख की जांच करने, उसके द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के आदेश देने और पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में उसके द्वारा दर्ज की गई इसी तरह की शिकायतों की संख्या का पता लगाने के लिए भी कहा। कुल मिलाकर, अकेले जींद में महिला द्वारा 19 शिकायतें दर्ज की गई थीं।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप झूठे और मनगढ़ंत पाए जाते हैं, तो हरियाणा के डीजीपी को कानून के अनुसार उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।’’ पीठ ने यह निर्देश तब दिया जब पीठ ने हाल ही में सिरसा, जींद, कैथल और चंडीगढ़ में अदालत के समक्ष समान तथ्यों और आरोपों वाले कई मामलों का संज्ञान लिया।
न्यायमूर्ति बरार ने आपराधिक अभियोजन का उपयोग कर अनजान पीड़ितों से धन ऐंठने की बेईमानीपूर्ण प्रथा की भी निंदा की, तथा कहा कि न्यायालयों को अनाज से भूसा अलग करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय की धारा दुर्भावनापूर्ण, कष्टप्रद कार्यवाहियों से अवरुद्ध न हो।
न्यायमूर्ति बरार ने कहा कि इस तरह की प्रथाओं के चलते निस्संदेह व्यापक परिणाम सामने आए हैं क्योंकि वास्तविक और झूठे मामलों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है। इसने लोगों को वास्तविक दुर्दशा और दुख के प्रति बेहद असंवेदनशील बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप उनके प्रति सहानुभूति की कमी हो गई है।
जस्टिस बरार ने कहा कि यौन उत्पीड़न से पीड़ित को बहुत तकलीफ और अपमान का सामना करना पड़ा। वहीं, झूठे आरोप लगाने से भी आरोपी और उसके परिवार को उतनी ही तकलीफ, अपमान और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय का हवाला देते हुए जिसमें कहा गया था कि प्रतिष्ठा अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण घटक है, न्यायमूर्ति बरार ने जोर देकर कहा कि झूठे आरोप का प्रभाव गहरा कलंक है और आरोपी के रूप में चित्रित व्यक्ति पर मनोवैज्ञानिक बोझ डालता है। यौन अपराध के अपराधी होने के दाग से उत्पन्न अपमान के कारण उसे निरंतर भय और चिंता में जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ा।