नई दिल्ली, 21 अगस्त । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की घटना में जान गंवाने वाली महिला डॉक्टर की पहचान सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से हटाने का आदेश दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मृतका का नाम और संबंधित हैशटैग मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम), यूट्यूब और एक्स (पूर्व में ट्विटर) सहित इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर व्यापक रूप से प्रसारित किए गए हैं।
साथ ही, मृतका के शव की तस्वीरें, वीडियो क्लिप सहित सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर प्रसारित की जा रही हैं।
पीठ ने कहा, “साफ तौर पर, यह ‘निपुण सक्सेना और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य’ में इस न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन है। इस न्यायालय ने निर्देश दिया है कि बलात्कार के पीड़ितों की पहचान सुरक्षित रखी जानी चाहिए और प्रेस, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया सहित मीडिया उनकी पहचान उजागर नहीं करेगा।” पीठ में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
शीर्ष अदालत ने निषेधाज्ञा आदेश पारित किया क्योंकि सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने मृतक की पहचान और शव की बरामदगी के बाद शव की तस्वीरें प्रकाशित करना शुरू कर दिया है। बार के सदस्यों द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा, “हम तदनुसार निर्देश देते हैं कि उपरोक्त घटना में मृतका के नाम, फोटो और वीडियो क्लिप के सभी संदर्भ इस आदेश के अनुपालन में सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से तुरंत हटा दिए जाएं।”
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मृतका के नाम, फोटो और वीडियो क्लिप के प्रकाशन को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की खिंचाई की। न्यायालय ने कहा, “यह बेहद चिंताजनक है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देने वाले पहले व्यक्ति हैं, लेकिन इसके लिए अच्छी तरह से स्थापित मानदंड हैं।”
इसके जवाब में, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा : “हमने 50 एफआईआर दर्ज की हैं। पुलिस के पहुंचने से पहले, तस्वीरें ली गईं और प्रसारित की गईं। हमने कुछ भी नहीं होने दिया।”
Leave feedback about this