स्थानीय नगर परिषद द्वारा जलभराव की समस्या को हल करने और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए बार-बार किए गए वादों के बावजूद शहर में समस्या जस की तस बनी हुई है। हर मानसून में निवासियों को जलभराव वाले बाजारों और पार्कों से जूझना पड़ता है। वहीं, पानी बचाने और भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए बनाए गए रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बेकार पड़े हैं।
भद्रा पार्क और जीवन सिंह जैन पार्क में पिछले दो सालों से रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। 2023 में नगर परिषद ने शहर के चार पार्कों में ये सिस्टम लगाने के लिए करीब 37 लाख रुपए खर्च किए थे। इसका मकसद बारिश के पानी को इकट्ठा करके उसे जमीन में सोखने देना था। लेकिन सिस्टम या तो गलत तरीके से बनाए गए या अधूरे ही छोड़ दिए गए। कई जगहों पर सिर्फ ईंटों की बाउंड्री बनाई गई। न तो सही फिल्टर हैं, न ही पाइपलाइन और ज्यादातर गड्ढे मिट्टी से भरे हुए हैं। पानी जमीन में नहीं जाता और पूरा सेटअप काम नहीं कर रहा।
महेश कुमार, गोरीशंकर बंसल, लविश कुमार, देविका रानी और सुमनलता जैसे निवासी, जो नियमित रूप से पार्कों में जाते हैं, कहते हैं कि इनमें से ज़्यादातर सिस्टम सिर्फ़ दिखावे के लिए हैं। कुछ में तो पानी भी इकट्ठा नहीं होता। भद्रा पार्क में भारी बारिश के दौरान बारिश का पानी 2 फ़ीट तक जमा हो जाता है, जिससे पौधों को बढ़ने में मदद करने के बजाय उन्हें नुकसान पहुँचता है।
जल प्रबंधन ठीक न होने के कारण पार्कों में लगे कई पौधे सूख रहे हैं, क्योंकि सिंचाई के लिए पानी नहीं है। अब नगर निगम ने 76 पार्कों में बोरवेल खोदने की नई योजना बनाई है। इसके लिए करीब 1.10 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। इसका लक्ष्य पार्कों को हरा-भरा रखने के लिए भूजल का इस्तेमाल करना है, क्योंकि वर्षा जल संचयन प्रणाली विफल हो गई है।
परिषद के अधिकारी मानते हैं कि कुछ पार्कों में सिस्टम काम नहीं कर रहा है और उसे ठीक किया जाएगा। लेकिन स्थानीय लोग और पूर्व पार्षद कौशल्या देवी इस विफलता के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि ठेकेदार ने घटिया काम किया, लेकिन कार्रवाई करने के बजाय नगर परिषद ने पूरा भुगतान कर दिया। कार्यकारी अभियंता (एक्सईएन) से नोटिस मिलने के बाद भी ठेकेदार ने समस्याओं को ठीक नहीं किया।
रवि कुमार और जतिन बंसल जैसे निवासियों का कहना है कि पूरी परियोजना बर्बाद हो गई है, और अब उन्हें बाढ़ और सूखे, मरते हुए पार्कों का सामना करना पड़ रहा है। हर बरसात का मौसम एक ही मुसीबत लेकर आता है और सुधार के वादे अधूरे रह जाते हैं।
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