July 7, 2025
National

‘राजा साहब’ वीरभद्र सिंह : सबसे लंबे समय तक रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री, आधुनिक हिमाचल के माने जाते हैं शिल्पकार

‘Raja Saheb’ Virbhadra Singh: The longest serving Chief Minister of the state, is considered the architect of modern Himachal

एक ऐसा शख्स जो सिर्फ एक प्रदेश का विधायक, सांसद या मुख्यमंत्री ही नहीं, उससे कहीं बढ़कर हिमाचल प्रदेश की आत्मा था। जनसेवा उनकी धड़कनों में बसती थी। शिमला की वादियों में 8 जुलाई 2021 की सुबह एक अजीब-सा खालीपन था, मानो पहाड़ों ने अपना सबसे ऊंचा शिखर खो दिया हो। यह दिन केवल एक राजनेता के जाने का नहीं था, बल्कि हिमाचल की राजनीति, संस्कृति और जनभावनाओं के एक युग के अंत था।

वीरभद्र सिंह, जिन्हें लोग ‘राजा साहब’ कहकर सम्मान देते थे, इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। वह हिमाचल प्रदेश के इतिहास का ऐसा अध्याय हैं, जिससे हर पीढ़ी ने कुछ न कुछ सीखा है और आने वाली पीढ़ियां भी सीखती रहेंगी। छह बार के मुख्यमंत्री, नौ बार के विधायक, पांच बार सांसद और हर बार जनता की नब्ज समझने वाले राजा वीरभद्र सिंह ने केवल कुर्सियों पर नहीं, लोगों के दिलों पर राज किया।

कुछ लोग सत्ता में आते हैं, कुछ लोग इतिहास बनाते हैं। वीरभद्र सिंह सत्ता में रहते हुए इतिहास रचने वालों में थे। रामपुर बुशहर राजघराने में 23 जून 1934 को जन्मे वीरभद्र सिंह के भीतर जन्म से ही एक शाही ठाठ था, लेकिन जीवन का उद्देश्य केवल विरासत संभालना नहीं बल्कि सेवा करना था। बिशप कॉटन स्कूल शिमला और सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने राजनीति को चुना और 1962 में पहली बार महासू लोकसभा सीट से सांसद बने। यह वही दौर था जब देश में कांग्रेस पार्टी अपनी जड़ों को गहरा कर रही थी और पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं की छवि युवाओं को प्रेरित कर रही थी। वीरभद्र सिंह नेहरू जी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे और खुलेआम कहते थे कि नेहरू जी ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे।

‘राजा साहब’ हिमाचल प्रदेश के इतिहास में एक ऐसे दिग्गज नेता के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने न केवल सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, बल्कि आधुनिक हिमाचल के निर्माता के रूप में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। वह पहली बार 8 अप्रैल 1983 से 5 मार्च 1990 तक (दो कार्यकाल) मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 3 दिसंबर 1993 से 23 मार्च 1998 तक; 6 मार्च 2003 से 29 दिसंबर 2007 तक; और 25 दिसंबर 2012 से 26 दिसंबर 2017 तक इस पद पर रहे। अपने 21 वर्षों के कार्यकाल के दौरान, वीरभद्र सिंह ने राज्य को आधुनिकता की राह पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके नेतृत्व में सड़कों का विस्तार हुआ, स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना हुई, स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया गया, और ग्रामीण विकास की योजनाओं को नई दिशा मिली। उनके इन प्रयासों ने हिमाचल प्रदेश को विकास के नए आयाम दिए और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया।

कांग्रेस पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और उनका समर्पण बेमिसाल था। उन्होंने न सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर संगठन को मजबूत किया, बल्कि नेता विपक्ष के रूप में भी उन्होंने अपनी गरिमा बनाए रखी। चाहे दिल्ली की सत्ता हो या शिमला की विधानसभा, वीरभद्र सिंह हर मंच पर स्पष्ट, सशक्त और प्रभावशाली नजर आते थे। उन्होंने न केवल राज्य की राजनीति में नेतृत्व किया बल्कि देश की संसद में भी हिमाचल की प्रभावी आवाज बने। वह पांच बार लोकसभा सांसद बने और केंद्र सरकार में पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन, इस्पात, लघु एवं मध्यम उद्योग जैसे विभागों में मंत्री के रूप में सेवाएं दीं।

वीरभद्र सिंह का जीवन सार्वजनिक और निजी दोनों मोर्चों पर अत्यंत अनुशासित रहा। उन्होंने दो शादियां कीं। उनकी पहली पत्नी जुब्बल की राजकुमारी रतन कुमारी थीं, जिनका जल्द ही निधन हो गया। बाद में उन्होंने प्रतिभा सिंह से विवाह किया, जो वर्तमान में भी सक्रिय राजनीति में हैं। उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह आज उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाते हैं।

राजा वीरभद्र सिंह केवल कांग्रेस समर्थकों के ही नहीं, बल्कि विपक्षी नेताओं के भी सम्मान के पात्र थे। उनके व्यवहार में शालीनता, भाषण में शुद्धता और कार्य में प्रतिबद्धता थी। राजनीति में वैचारिक मतभेदों के बावजूद उन्होंने कभी व्यक्तिगत कटुता को जगह नहीं दी। वे एक विकास पुरुष, एक राजनीतिक संतुलनकारी, एक सामाजिक एकता के प्रतीक और हिमाचल की आत्मा थे। उनका राजनीतिक जीवन नई पीढ़ी के नेताओं को सिखाता है कि लंबी पारी केवल रणनीति से नहीं, जनसेवा से खेली जाती है।

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