February 8, 2025
Uttar Pradesh

रामचरित मानस मानव कल्याण के लिए सौंपी गई अनुपम भेंट : आचार्य संगम

Ramcharit Manas is a unique gift given for human welfare: Acharya Sangam

महाकुंभ नगर, 8 फररी । आपने अक्सर सुना होगा ‘राम से बड़ा राम का नाम’, मगर ऐसा क्यों है? यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है। इसी महत्वपूर्ण सवाल का जवाब महाकुंभ-2025 में संतों के सानिध्य से श्रद्धालुओं को प्राप्त हो रहा है। इस विषय में श्री शंभू पंचअग्नि अखाड़ा के आचार्य संगम ने जानकारी देते हुए कहा कि राम का नाम केवल प्रभु श्रीराम के अवतार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सकल ब्रह्मांड के स्पंदन का नाद है। राम नाम की महिमा क्या है, इसे समझना हो तो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस का अध्ययन और महात्म्य समझना आवश्यक है।

उनके अनुसार, रामचरित मानस कोई ग्रंथ नहीं है बल्कि यह ईश्वर द्वारा मानव कल्याण के लिए सौंपी गई अनुपम भेंट है। आज के आधुनिक परिवेश में युवाओं को अधिक से अधिक रामचरित मानस से जुड़कर आदर्श जीवन जीने की सूक्ति को समझकर उसे अपने जीवन में ढालना चाहिए। यही कारण है कि देववाणी संस्कृत के बजाए तुलसीदास जी ने इसकी रचना अवधी भाषा में की थी।

महादेव शिव को राम नाम कितना प्यारा है, यह किसी से छिपा नहीं है। राम नाम की महिमा तो खुद महादेव ने ही एक बार माता पार्वती को बताई थी। इस विषय पर आचार्य संगम ने बताया कि तुलसीदास जी जब ईश्वरीय आज्ञा से काशी के अस्सी घाट पर रामचरित मानस ग्रंथ को लिखने का कार्य प्रारंभ कर रहे थे, तब स्वयं बाबा विश्वनाथ तुलसीदास जी के सपने में आए और उन्होंने इसे वेदवाणी संस्कृत के बजाय साधारण देशज भाषा में लिखने का आदेश दिया। जिससे इसका लाभ आम लोगों तक भी पहुंच सके।

आचार्य संगम के अनुसार, काशी में ही जब रामचरित मानस के महात्म्य को प्रकाशित करने के लिए परीक्षा ली गई तो जो परिणाम आया, उसने सभी को दंग कर दिया था। उनके अनुसार, महाराष्ट्र के अखंडानंद जी ने इस विषय में उन्हें जानकारी दी थी कि जब रामचरित मानस को प्रमाणित करने के लिए वेद समेत सभी ग्रंथों के नीचे रखा गया था तो ईश्वरीय आज्ञा से रामचरित मानस स्वतः ही सभी ग्रंथों के ऊपर आ गया। यह इसकी सार्वभौमिकता और सभी ग्रंथों के मूल तत्वों के संकलित स्वरूप होने के भाव को दर्शाता है।

आज के युवाओं को सद्कर्म, सद्चरित्र और ईश्वरीय मार्ग की प्रेरणा देने के साथ ही रोजमर्रा के जीवनयापन को भी आदर्श तरीके से कैसे किया जाए, इसकी प्रेरणा रामचरित मानस देता है। आचार्य संगम ने कहा कि चाहे कोई भी मानवीय रिश्ते हों, चाहे कोई भी परिस्थिति हो, चाहे जैसी भी विषम स्थिति हो, आदर्श आचरण कैसा होना चाहिए, इस बात की प्रेरणा रामचरित मानस से मिलती है।

यही कारण है कि कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी भी दौर से गुजर रहा हो, अगर वह रामचरित मानस का अनुसरण करेगा तो उसे सद्कर्म और ईश्वरीय प्रेरणा का लाभ अवश्य मिलेगा। यह ईश्वर को समझने के साथ ही उनकी सीख के अनुसार खुद को निर्मल बनाने का मार्ग है और यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी अगर रामचरित मानस का अनुसरण कर जीवनयापन करेगी तो देश, प्रदेश, कुटुम्ब समेत व्यक्तिगत विकास के लिए भी श्रेयस्कर होगा।

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