July 12, 2025
National

‘भारत की धार्मिक राजधानी’ जहां काशी के नाथ देवता ‘विश्वनाथ’ ब्रह्मांड के शासक के रूप में विराजते हैं

‘Religious capital of India’ where the Nath deity of Kashi ‘Vishwanath’ resides as the ruler of the universe

पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित, और बारह ज्योतिर्लिंग में से एक देवों के देव महादेव जहां ज्योति स्वरूप में विराजते हैं। जिनके निवास स्थान को मोक्ष की नगरी के नाम से जाना जाता है। उस वाराणसी में विश्वनाथ या विश्वेश्वर के रूप में महादेव विराजमान हैं। उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक नगरी जिसकी हवाओं में शिव के प्राण रस बहते हैं। शिव और काल भैरव की यह नगरी अद्भुत है जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है।

इस नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह इस धरती की हिस्सा नहीं है। काशी तो शिव के त्रिशुल पर बसी है। ऐसे में इस मोक्ष की नगरी और पाप नाशिनी भी कहा जाता है। इस नगरी के बारे में पुराणों में वर्णित है कि यह भगवान विष्णु की नगरी थी । यहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे। जहां भगवान के आनंद के आंसू गिर थे वहां सरोवर बन गया जहां प्रभु ‘बिंधुमाधव’ के रूप में पूजे गए। कहते हैं कि शिव को यह नगरी इतनी भा गई कि उन्होंने भगवान श्रीहरि से इसे अपने निवास के लिए मांग लिया।

काशी विश्वनाथ के इस मंदिर को कई बार आक्रांताओं के द्वारा छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की गई लेकिन, हिंदू आस्था हर बार इतनी ताकतवर रही कि मंदिर का निर्माण फिर से भव्य तरीके से कर दिया गया। वहीं काशी विश्वनाथ के साथ इस नगरी में शिव के गण और पार्वती के अनुचर भैरव काशी के कोतवाल के रूप में विराजते हैं। ऐसे में काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन की परंपरा है। मंदिरों के इस शहर की हर गलियां सनातन की समृद्ध परंपरा की गवाही है। यह मोक्ष की नगरी है ऐसे में लोग काशी में अपने जीवन का अंतिम वक्त बीताने आते हैं।

वैसे भी पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो वाराणसी दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी काशी का जिक्र मिलता है। वहीं महाभारत और उपनिषद में भी इसके बारे में वर्णित है। यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा का ज्योतिर्लिंग ईशान कोण में स्थित है, जो दिशा शास्त्र और वास्तु के अनुसार विद्या, कला, साधना और ब्रह्मज्ञान का प्रतीक है। ईशान कोण में शिव का वास यह दर्शाता है कि यहां भगवान का नाम केवल शंकर ही नहीं, ईशान के रूप में विद्या और तंत्र का अधिपति स्वरूप भी है।

यहां काशी में बाबा विश्वनाथ और मां भगवती हर पल विराजते हैं। मां भगवती यहां अन्नपूर्णा के रूप में हर जीव का पोषण करती हैं, और बाबा विश्वनाथ मृत्यु के उपरांत आत्मा को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। यह शिव-शक्ति का दुर्लभ संयोग काशी को दिव्यता, पूर्णता और सनातन ऊर्जा का स्रोत बनाता है।

यहां मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी है, और बाबा का मुख उत्तर दिशा की ओर अर्थात अघोर दिशा में स्थित है। जब भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले उसे शिव के अघोर रूप के दर्शन होते हैं। जो समस्त पापों, तापों और बंधनों को नष्ट कर देने की शक्ति रखते हैं।

महादेव के इस ज्योतिर्लिंग को लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में लिखा गया है। सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् । वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, देवी अन्नपूर्णा का महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे “अन्न की देवी ” माना जाता है। वहीं सिंधिया घाट के पास, ‘संकट विमुक्ति दायिनी देवी’ देवी संकटा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। इसके परिसर में शेर की एक विशाल प्रतिमा है। इसके अलावा यहां 9 ग्रहों के नौ मंदिर हैं।

वहीं विशेसरगंज में हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाराणसी का महत्वपूर्ण एवं प्राचीन मंदिर है। भगवान काल भैरव जिन्हें ‘वाराणसी के कोतवाल’ के रूप में माना जाता है, बिना उनकी अनुमति के कोई भी काशी में नहीं रह सकता है। यहीं कालभैरव मंदिर के निकट दारानगर के मार्ग पर भगवान शिव का मृत्युंजय महादेव मन्दिर मंदिर स्थित है। इस मंदिर का पानी कई भूमिगत धाराओं का मिश्रण है और कई रोगों को नष्ट करने के लिए उत्तम है।

वहीं शिव की इस नगरी में तुलसी मानस मन्दिर भी है। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है, यह उस स्थान पर स्थित है जहां रामचरित मानस के रचियेता गोस्वामी तुलसीदास रहते थे, जहां उन्होंने इस ग्रंथ की रचना की थी। वहीं पास में दुर्गा मंदिर स्थित है जो शक्ति को समर्पित है। यहां मां दुर्गा कुष्मांडा स्वरूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही यहां भगवान हनुमान का प्रसिद्ध मंदिर संकटमोचन मन्दिर स्थित है। यह मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित किया गया है।

हालांकि इसके अलावा काशी की हर गली में मंदिरों की पूरी-पूरी श्रृंखला मौजूद है। ऐसे ही नहीं काशी को ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की पवित्र नगरी’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’ आदि नामों से जाना जाता है।

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