मुंबई, 12 नवंबर प्रसिद्ध लोक गायिका और छठ के गीतों को नया आयाम देने वाली शारदा सिन्हा भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे। इस बीच लोक गायिका का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह हॉस्पिटल बेड पर छठ गीत गाती नजर आ रही हैं।
लंबी बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती लोक गायिका ने एम्स, दिल्ली में आखिरी सांस ली। गत 5 नवंबर को 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वह अपनी शानदार आवाज की वजह से घर-घर लोकप्रिय थीं और उनके छठ गीत हर घर में बजते थे। ऐसे में गायिका का आखिरी वीडियो देख उनके प्रशंसकों की आंखें नम हो गईं।
वायरल हो रहे वीडियो में शारदा सिन्हा बेहद कमजोर लग रही हैं और उनके पास एक छोटी बच्ची बैठी है, जो उनके साथ गाती नजर आ रही है।
शारदा सिन्हा के निधन से करीब डेढ़ महीने पहले ही उनके पति ब्रजकिशोर सिन्हा का निधन हुआ था। इसे लेकर उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट भी शेयर किया थी।
शारदा सिन्हा ने छठ महापर्व के लिए ‘केलवा के पात पर उगेलन सुरुजमल झांके झुके’ और ‘सुनअ छठी माई’ जैसे कई प्रसिद्ध छठ गीत गाए हैं। इन गीतों के बिना छठ पर्व मानों अधूरा सा लगता है। उनके गाए गीत देश क्या, सात समुंदर पार अमेरिका तक में भी सुने जाते हैं।
शारदा सिन्हा ने अपनी मधुर आवाज से न केवल भोजपुरी और मैथिली संगीत को नई पहचान दिलाई, बल्कि बॉलीवुड में भी अपनी अद्वितीय गायकी का जलवा बिखेरा। उनकी आवाज में सलमान खान की फिल्म “मैंने प्यार किया” का गाना “कहे तोसे सजना” बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा, उन्होंने “गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2” और “चारफुटिया छोकरे” जैसी फिल्मों में भी गाने गाए, जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा।
बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में 1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा सिन्हा बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि रखती थीं। उनकी संगीत यात्रा बिहार के बेगूसराय जिले के सिहमा गांव से शुरू हुई, जहां उनके ससुराल वाले रहते थे। यहीं पर उन्होंने मैथिली लोकगीतों के प्रति अपनी रुचि विकसित की, जो बाद में उनके संगीत करियर का आधार बनी।
मैथिली के अलावा उन्होंने भोजपुरी, मगही और हिंदी संगीत में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। इलाहाबाद में आयोजित बसंत महोत्सव में अपने गायन से उन्होंने सभी को मंत्रमुग्ध किया और प्रयाग संगीत समिति ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें मंच पर प्रदर्शन करने का अवसर दिया।
संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को सराहा गया और उन्हें 1991 में ‘पद्मश्री’ और 2018 में ‘पद्म भूषण’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।