N1Live Entertainment सत्यजीत रे की 15 फिल्मों में काम करने वाले इकलौते अभिनेता सौमित्र चट्टोपाध्याय, अभिनय के अलावा लिखी कई कविताएं और नाटक
Entertainment

सत्यजीत रे की 15 फिल्मों में काम करने वाले इकलौते अभिनेता सौमित्र चट्टोपाध्याय, अभिनय के अलावा लिखी कई कविताएं और नाटक

Soumitra Chattopadhyay, the only actor to appear in 15 Satyajit Ray films, also wrote numerous poems and plays.

बंगाली सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, कवि और लेखक सौमित्र चट्टोपाध्याय ने अपने अभिनय, सोच और सादगी से भारतीय फिल्मों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। सिनेमा जगत में उनका कद इतना बड़ा माना जाता था कि प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत रे ने अपनी कई फिल्मों की कहानियां उन्हीं को ध्यान में रखकर लिखीं।

यही नहीं, सत्यजीत रे की कुल 34 फिल्मों में से 15 फिल्मों में उन्होंने सौमित्र को मुख्य भूमिका दी थी। यह किसी भी अभिनेता के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है।

सौमित्र चट्टोपाध्याय का जन्म 19 जनवरी 1935 को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर में हुआ था। उनके पिता वकील थे और नाटक में अभिनय भी करते थे। परिवार में कला और साहित्य का माहौल था, जिससे सौमित्र बचपन से ही अभिनय की ओर खिंचते चले गए। उन्होंने अपनी पढ़ाई कोलकाता से की और बंगाली साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही वे नाटकों में हिस्सा लेने लगे और धीरे-धीरे अभिनय उनका जुनून बन गया।

सिनेमा में आने से पहले सौमित्र ऑल इंडिया रेडियो में अनाउंसर के रूप में काम करते थे। उनकी आवाज में गहराई और आत्मविश्वास था। इसी दौरान उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे से हुई। रे उनकी प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म ‘अपुर संसार’ (1959) में मुख्य भूमिका के लिए चुन लिया। यह फिल्म प्रसिद्ध अपु त्रयी का अंतिम भाग था।

दरअसल, अपु त्रयी में सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित तीन भारतीय बंगाली भाषा की ड्रामा फिल्में शामिल हैं। इसमें ‘पाथेर पांचाली’ (1955), ‘अपराजितो’ (1956), और ‘अपुर संसार’ (अपू की दुनिया) (1959) शामिल हैं।

इस फिल्म में सौमित्र ने अपु का किरदार निभाया और जैसे ही फिल्म रिलीज हुई, वे बंगाली सिनेमा के नए चेहरे बन गए।

इसके बाद शुरू हुआ सौमित्र और सत्यजीत रे का लंबा और सुनहरा सफर। दोनों ने मिलकर बंगाली सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। ‘अभिजान’, ‘चारुलता’, ‘कापुरुष’, ‘अरण्येर दिनरात्रि’, ‘अशनि संकेत’, ‘सोनार केला’, ‘जॉय बाबा फेलुनाथ’, ‘घरे-बाइरे’, ‘गणशत्रु’, और ‘शाखा प्रशाखा’ जैसी फिल्मों में दोनों की जोड़ी ने जादू बिखेरा।

सत्यजीत रे ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैंने कई फिल्मों की पटकथा सौमित्र को ध्यान में रखकर ही लिखी।’ सौमित्र केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक विचारशील कलाकार भी थे। उन्होंने अभिनय को कभी पैसा या प्रसिद्धि कमाने का साधन नहीं माना। वे हमेशा कहते थे, ”मैं फिल्मों में पैसे के लिए नहीं आया, बल्कि खुद को अभिव्यक्त करने के लिए आया हूं।”

अपने करियर में उन्होंने सत्यजीत रे के अलावा मृणाल सेन, तपन सिन्हा, तरुण मजूमदार और ऋतुपर्णो घोष जैसे निर्देशकों के साथ भी काम किया। उन्होंने ‘कोनी’, ‘सात पाके बांधा’, ‘झिंदर बांदी’, ‘तीन कन्या’ जैसी कई यादगार फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी।

फिल्मों के साथ-साथ सौमित्र का थिएटर और साहित्य से भी गहरा रिश्ता था। वह शानदार कवि और नाटककार थे। लोग उनकी कविताएं सुनने के लिए सभागारों में टिकट लेकर जाते थे। उन्होंने कई नाटक लिखे और निर्देशित किए। उनकी कला सिर्फ परदे तक सीमित नहीं थी, बल्कि मंच, शब्द और विचारों तक फैली हुई थी।

अपने शानदार योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। उन्हें पद्म भूषण (2004), दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2012), और फ्रांस का सर्वोच्च सम्मान ‘लीजन ऑफ ऑनर’ (2018) से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें कई बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिले।

15 नवंबर 2020 को कोलकाता में 85 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके जाने से बंगाली सिनेमा ने अपना सबसे बड़ा सितारा खो दिया, लेकिन उनकी फिल्में और उनके किरदार आज भी जिंदा हैं।

Exit mobile version