राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण चंडीगढ़-बद्दी रेलवे परियोजना के लिए अभी तक अपना पूरा हिस्सा नहीं दिया है, जिसे केन्द्र सरकार के साथ 50:50 अनुपात में वित्तपोषित किया जा रहा था।
परियोजना की कुल लागत 1,540.13 करोड़ रुपये आंकी गई है। भुगतान में देरी और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा काम रोक दिए जाने जैसी बाधाओं के कारण, परियोजना जून 2025 के लिए निर्धारित अपनी समय सीमा से चूक गई। एनजीटी परियोजना के लिए मिट्टी के अवैध उपयोग पर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी
रेल मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष में कुल परिव्यय का 452.50 करोड़ रुपये आवंटित किया था, जिससे चंडीगढ़-बद्दी रेलवे लिंक परियोजना को गति मिली। 2024-25 के अंतरिम बजट में 33.23 किलोमीटर लंबी चंडीगढ़-बद्दी रेलवे लाइन को तेजी से पूरा करने के लिए 300 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी।
राज्य सरकार द्वारा प्रतिबद्धताओं को पूरा न करने के कारण भानुपल्ली-बिलासपुर-बेरी और चंडीगढ़-बद्दी की दो नई रेलवे परियोजनाओं के पूरा होने में देरी हो रही है, क्योंकि 1,496.75 करोड़ रुपये बकाया हैं।
रोपवे एवं रैपिड ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के निदेशक अजय शर्मा ने बताया, ‘राज्य सरकार ने उत्तर रेलवे को 340.74 करोड़ रुपए दिए हैं, जिसमें 2024-25 के लिए 130.05 करोड़ रुपए शामिल हैं, जबकि इसकी लंबित देनदारी 109.26 करोड़ रुपए है।’ उन्होंने कहा कि परियोजना पूरी होने पर शेष धनराशि प्रदान की जाएगी।
नालागढ़ में परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का काम सौंपे गए विशेष कार्य अधिकारी सुभाष सकलानी ने कहा, “जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए, इसके मूल्य का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। सैंडहोली में रेलवे ओवर-ब्रिज का निर्माण अभी शुरू होना बाकी है। औपचारिकताओं के पूरा होने तक भूमि मालिकों को लगभग 5 से 7 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाना बाकी है, जबकि 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।”
चंडीमंदिर में हरियाणा द्वारा किया जा रहा सिविल कार्य भी धीमी गति से चल रहा है, जिससे इसके समय पर पूरा होने में देरी होगी।
27.95 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन का 3.05 किलोमीटर हिस्सा हिमाचल प्रदेश में और बाकी 24.9 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा में होगा। 6 जून, 2019 को केंद्रीय रेल मंत्रालय द्वारा एक विशेष रेलवे परियोजना घोषित की गई यह परियोजना बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ औद्योगिक केंद्र को कनेक्टिविटी प्रदान करेगी।
वर्ष 2007-08 में स्वीकृत इस ब्रॉड गेज परियोजना में विभिन्न कारणों से देरी हुई है, जिनमें उच्च अधिग्रहण लागत और हरियाणा द्वारा संसाधन जुटाने से इनकार करना शामिल है।
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