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पंजाब में पराली प्रबंधन नीति लागू, लेकिन इसे अपनाना चुनौती

पिछले छह सालों की तरह इस साल भी राज्य सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन (धान की पराली) के लिए एक शानदार योजना बनाई है। हालांकि, सवाल यह है कि क्या योजना को उतने ही अच्छे तरीके से लागू किया जाएगा, जितना कि इसे तैयार किया गया है, खासकर तब जब किसानों के विरोध के कारण पराली प्रबंधन अधर में लटका हुआ है।

इस वर्ष धान की खेती (बासमती और गैर-बासमती दोनों) के अंतर्गत 31.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 19.52 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) धान की पराली उत्पन्न होने की उम्मीद है। संपूर्ण धान की पराली का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करने की योजना तैयार की गई है।

हालांकि, पराली प्रबंधन मशीनरी जारी करने में देरी, जनता के विरोध के कारण संपीड़ित बायोगैस संयंत्रों का चालू न हो पाना, तथा किसान संघों द्वारा खेतों में आग लगाने के खिलाफ आदेश जारी करने में विफलता को देखते हुए यह कदम काफी महत्वाकांक्षी हो सकता है।

36,020 पराली प्रबंधन मशीनें, मुख्य रूप से सतही बीज बोने वाली मशीनें, बेलर और रेकर्स उपलब्ध कराने के लक्ष्य के मुकाबले सरकार ने इन मशीनों को खरीदने के लिए सब्सिडी प्राप्त करने हेतु आवेदन करने वाले किसानों के लिए 14,596 मशीनें स्वीकृत की हैं, जिसमें केंद्र से 60 प्रतिशत और राज्य से 40 प्रतिशत सब्सिडी शामिल है।

इनमें से 6,597 मशीनें किसानों द्वारा खरीदी गई हैं। यह संख्या फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देने की केंद्रीय योजना शुरू होने के बाद 2018 और 2023 के बीच राज्य भर में खरीदी गई 1,38,022 मशीनों से अधिक है।

 

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