मंडी ज़िले के थुनाग स्थित बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय की दो गर्भवती शिक्षिकाओं को उनके छात्रों और सहकर्मियों ने साहस और करुणा का एक अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए, खतरनाक रास्तों से पैदल ही सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। उनके इस साहसिक प्रयास से न केवल गर्भवती माताओं की जान बच गई, बल्कि दो नवजात शिशुओं का जन्म भी हुआ।
डॉ. नेहा ठाकुर ने 8 जुलाई को मंडी के सुंदरनगर स्थित सिविल अस्पताल में एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया, जबकि डॉ. सरिता ने 12 जुलाई को हमीरपुर के साईं अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया। इस साहसिक बचाव कार्य के बिना, दोनों माताओं और उनके अजन्मे बच्चों की जान गंभीर खतरे में पड़ सकती थी।
यह बचाव कार्य सेराज क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश से हुई तबाही के बीच किया गया, जिससे सड़कें टूट गईं, बिजली-पानी की आपूर्ति बाधित हुई और 115 से ज़्यादा घर और 100 दुकानें क्षतिग्रस्त हो गईं। दुर्भाग्य से, अकेले थुनाग में ही पाँच लोगों की जान चली गई। आपदाग्रस्त क्षेत्र में फँसी डॉ. नेहा और डॉ. सरिता, जिनकी प्रसव की तारीख़ नज़दीक थी, को तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता थी।
दुर्गम सड़कों और आपातकालीन सेवाओं के दुर्गम कॉलेज तक पहुँचने में असमर्थता के कारण, छात्रों और संकाय सदस्यों ने 2 जुलाई को एक असाधारण मिशन के लिए एकजुट होकर काम किया। उन्होंने अस्थायी पालकियाँ बनाईं और खतरनाक पहाड़ी रास्तों, उफनती नदियों और अस्थिर भूभाग को पार करते हुए थुनाग से बग्स्याड़ तक 11 किलोमीटर की कठिन यात्रा शुरू की।
इस साहसिक प्रयास का नेतृत्व छात्र कर रहे थे, जिनमें प्रीक्षित वर्मा, शिवांग, तुषार ठाकुर, उदय ठाकुर, दीपक ठाकुर, आर्यन, विनीत, आर्यन अत्री, आयुष्मान और अन्य शामिल थे। उन्होंने न केवल पालकी उठाई, बल्कि पूरे जोखिम भरे सफर में अटूट नैतिक समर्थन और सुरक्षा भी प्रदान की। दोनों शिक्षकों ने अद्भुत दृढ़ता का परिचय देते हुए, ऐसे रास्तों पर पैदल चलकर यात्रा की जहाँ रास्ता इतना संकरा या खतरनाक था कि एक अस्थायी स्ट्रेचर भी काम नहीं आ सकता था।
डॉ. हिमानी, डॉ. रजत, डॉ. अजिंदर, डॉ. जय पाल, डॉ. किशोर शर्मा, डॉ. किशोर ठाकुर, डॉ. विजय राणा, कुलदीप और नीम चंद जैसे संकाय सदस्यों ने इस ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डीन डॉ. पीएल शर्मा ने पूरे प्रयास की निगरानी की और अफरा-तफरी के बीच समन्वय और सुरक्षा सुनिश्चित की।
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