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सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दी, 2004 के फैसले को पलटा

Supreme Court approves quota within quota, reverses 2004 decision

नई दिल्ली, 1 अगस्त । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने एससी-एसटी में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है। यानी एससी-एसटी कोटे में उप-वर्गीकरण (सब कैटेगरी) किया जा सकता है।

सात जजों की संविधान पीठ ने ईवी चिन्नैया के 2004 के फैसले को पलट दिया, जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उप-जातियों को विशेष लाभ देने से इनकार किया गया था।

साल 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्य एक समान समूह हैं, जिन्हें आगे किसी उप-समूह या वर्गीकरण में बांटा नहीं जा सकता।

ईवी चिन्नैया के फैसले में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों को फिर से वर्गीकृत करना विपरीत भेदभाव के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

साल 2020 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि ईवी चिन्नैया फैसले पर एक बड़ी पीठ द्वारा दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है। आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद और गरीब लोगों तक नहीं पहुंच रहा है।

सुप्रीम कोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें 2006 के पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम को रद्द कर दिया गया था, जिसके तहत अनुसूचित जाति कोटे के तहत वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को ‘प्रथम वरीयता’ दी गई थी।

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