N1Live National सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाई कोर्ट के कामाख्या मंदिर को विनियमित करने के लिए कानून बनाने का आदेश रद्द किया
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सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाई कोर्ट के कामाख्या मंदिर को विनियमित करने के लिए कानून बनाने का आदेश रद्द किया

Supreme Court quashes Gauhati High Court's order to make law to regulate Kamakhya temple

नई दिल्ली, 17 नवंबर । सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी उच्च न्यायालय के उस आदेश को अमान्य कर दिया है जिसमें असम के कामरूप (मेट्रो) के उपायुक्त को निर्देश दिया गया था कि कामाख्‍या मंदिर के विकास कार्यों के लिए भक्तों और जनता द्वारा दिए गए दान के लिए एक अलग खाता बनाया जाये।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने हाल के एक आदेश में कहा कि असम सरकार ने इस साल सितंबर में दायर एक हलफनामे में कहा था कि “वर्तमान में डोलोई समाज मंदिर प्रशासन के मामलों को संतोषजनक ढंग से चला रहा है। स्थानीय प्रशासन और मौजूदा व्यवस्था के साथ समन्वय जारी रह सकता है”।

राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक अन्य हलफनामे में कहा, “असम सरकार पीएम डिवाइन योजना के तहत मां कामाख्या मंदिर की विकास गतिविधियों को बड़े पैमाने पर चला रही है।”

राज्य के अधिकारियों ने यह भी आश्वासन दिया कि एसबीआई की कामाख्या मंदिर शाखा में जमा 11,00,664.50 रुपये की राशि डोलोई समाज, मां कामाख्या देवालय को सौंप दी जाएगी।

एक जनहित याचिका (पीआईएल) में पारित अपने 2015 के फैसले में, गौहाटी उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को “मंदिर की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने के लिए उचित कानून बनाने” की सिफारिश की थी।

इसने उपायुक्त से भक्तों और जनता द्वारा दिए गए दान को प्राप्त करने के लिए एक अलग खाता बनाने और विकासात्मक गतिविधियों के लिए इस तरह के धन का उपयोग करने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय ने कहा था, “अगर मंदिर की पहाड़ी की चोटी पर बड़े पैमाने पर विकास होता है, तो इसके लिए उचित और प्रभावी प्रबंधन और रखरखाव की आवश्यकता हो सकती है।”

इस फैसले के खिलाफ 2015 में दायर एक पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुनाते हुये उच्च न्यायालय ने 2017 में कहा था, “मंदिर की विकासात्मक गतिविधियों के लिए कामाख्या मंदिर में भक्तों और जनता द्वारा दिया गया कोई भी दान उपायुक्त द्वारा प्राप्त किया जाएगा, जो इसका एक अलग खाता भी रखेंगे। उस राशि का उपयोग मंदिर की विकासात्मक गतिविधियों के लिए किया जायेगा। भक्तों और जनता द्वारा मंदिर में दिए जाने वाले सामान्य प्रसाद के लिए उपायुक्त को एक अलग खाता बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है।“

उसी वर्ष अक्टूबर में पारित एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। गत 10 नवंबर को आदेश दिया गया, “तदनुसार, विवादित फैसले लागू नहीं होंगे और व्यवस्था, जो इस आदेश में और असम राज्य के दोनों हलफनामों के संदर्भ में ऊपर उल्लिखित है, लागू रहेगी।”

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