हिमाचल प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले महाधिवक्ता ने आज कुल्लू में 284 करोड़ रुपये की बिजली महादेव रोपवे परियोजना के संबंध में सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सूचित किया कि राष्ट्रीय राजमार्ग रसद प्रबंधन लिमिटेड (एनएचएलएमएल) इस परियोजना का क्रियान्वयन कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य के अधिकारियों ने इस परियोजना के लिए कोई मंज़ूरी नहीं दी है। जहाँ तक पर्यावरणीय मंज़ूरी का सवाल है, राज्य की भूमिका बहुत सीमित है।
आवेदक के वकील अजय मारवाह ने कहा कि न्यायाधिकरण ने पाया कि तामील का हलफनामा पेश नहीं किया गया था और अन्य प्रतिवादियों की ओर से कोई प्रतिनिधि पेश नहीं हुआ था। परिणामस्वरूप, एनजीटी ने आवेदक को शेष प्रतिवादियों को “दस्ती” (व्यक्तिगत सेवा) के माध्यम से नोटिस तामील करने और तदनुसार हलफनामा पेश करने की अनुमति दी थी। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को निर्धारित है।
पिछले महीने, एनजीटी ने हिमाचल प्रदेश सरकार, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एनएचएलएमएल, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य वन विभाग, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कुल्लू के उपायुक्त सहित कई एजेंसियों को नोटिस जारी किए थे। इन नोटिसों में याचिका में उठाए गए गंभीर पर्यावरणीय आरोपों पर जवाब मांगा गया था।
यह मामला स्थानीय निवासी नचिकेता शर्मा द्वारा दायर एक याचिका से उपजा है, जिसमें उन्होंने रोपवे निर्माण से प्रभावित होने वाले खराल घाटी और बिजली महादेव पहाड़ी में वनों की कटाई, ढलानों के अस्थिर होने और पारिस्थितिक क्षरण पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। अब, बिजली महादेव मंदिर समिति को भी इस मामले में शामिल कर लिया गया है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, केंद्र सरकार की ‘पर्वतमाला’ पहल का हिस्सा इस परियोजना के तहत, 3.1 हेक्टेयर वनभूमि पर काटे जाने के लिए स्वीकृत 203 पेड़ों में से कम से कम 77 देवदार के पेड़ों को कथित तौर पर उचित पर्यावरणीय मूल्यांकन के बिना ही काटा जा चुका है। न्यायाधिकरण को सौंपे गए फोटोग्राफिक साक्ष्यों से कथित तौर पर मानसूनी बारिश के बाद निर्माण स्थल पर भूस्खलन और धंसाव का पता चलता है, जो हिमालयी भूभाग की नाजुक प्रकृति को रेखांकित करता है।
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