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महात्मा गांधी के करीबी रहे महादेव देसाई की डायरी में हैं कई अनोखे किस्से

The Mahatma's time-keeper and a copious chronicler of his life.

महात्मा गांधी के जीवन की प्रमुख घटनाओं पर उनके निजी सचिव महादेव देसाई, (उन कुछ व्यक्तियों

में से एक जिनकी इस अवधि के दौरान राष्ट्रपिता के सबसे करीबी थे) द्वारा 1917 से 1942 तक भारतीय

The Mahatma’s time-keeper and a copious chronicler of his life.

स्वतंत्रता संग्राम में विस्तार से वर्णन किया गया है जिसे महादेवभाई की डायरी कहा जाता है।

 

गांधी के जीवन, उनकी विशिष्टताओं और उनके जी वन दर्शन के बारे में इसमें उल्लेख हैं, उन किताबों के बारे में टिप्पणियां हैं, जो उन्होंने पढ़ी थीं और कुछ किताबों से बहुत सारे दिलचस्प उद्धरणों के साथ, संक्षेप में, गांधी के जीवन के कुछ सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं।

ब्रिटिश मूल के भारतीय मानवविज्ञानी और आदिवासी कार्यकर्ता वेरियर एल्विन ने देसाई के बारे में कहा है, “वह (एक निजी सचिव) इससे कहीं अधिक थे।”

“वह वास्तव में गृह और विदेश सचिव संयुक्त थे। उन्होंने सब कुछ मैनेज किया। उन्होंने सभी व्यवस्थाएं कीं। उन्होंने कई मेहमानों की देखभाल कीं।”

महात्मा के पोते, राजमोहन गांधी ने बतया कि, “सूरज उगने से पहले गांधी के जगने से पहले वो उठ जाते थे और गांधीजी के सोने के बाद सोते थे, देसाई, गांधी से तीन गुना काम करते थे। सबसे पहले वो अनुमान लगाते थे कि गांधी को आज क्या काम है, फिर गांधी के साथ समय बिताते थे और अंत में इन सबकों अपनी डायरी में उतारने के लिए देर रात तक जगते थे।”

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि देसाई को विभिन्न अवसरों पर गांधी के बोसवेल, सुकरात के लिए प्लेटो और बुद्ध के आनंद के रूप में वर्णित किया गया है।

यह प्रशंसा उस व्यक्ति के लिए काफी हद तक योग्य है, जिसने गांधी की आत्मकथा, ‘द स्टोरी ऑफ माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ का अंग्रेजी में गुजराती मूल से अनुवाद किया और मरणोपरांत ‘महादेवभाई की डायरी’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वह गुजराती, बंगाली और अंग्रेजी के साथ सहज थे और उन्हें गुजराती में अनुवादक और लेखक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई आत्मकथाएं- ‘वीर वल्लभभाई’ और ‘बी खुदाई खिदमतगार’ (खान अब्दुल गफ्फार खान और उनके भाई खान अब्दुल जब्बार खान पर) लिखीं।

अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादकों के सम्मेलन के संस्थापक सदस्य देसाई, गांधी के प्रकाशन ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ में भी नियमित योगदान देते थे और दो साल तक इलाहाबाद से ‘स्वतंत्र’ समाचार पत्र चलाया, जब मोतीलाल नेहरू ने गांधी से उनकी सेवाओं की मांग की।

गुजरात के सूरत जिले के सरस गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे महादेव हरिभाई देसाई (1 जनवरी, 1892 – 15 अगस्त, 1942) की शिक्षा सूरत हाई स्कूल और बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई और उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की। 1913 में एलएलबी प्राप्त करने के बाद, उन्होंने बॉम्बे के सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक में एक इंस्पेक्टर के रूप में नौकरी की।

देसाई पहली बार 1915 में गांधी से मिले थे, जब उन्होंने अपनी पुस्तक (जॉन मॉर्ले की अंग्रेजी पुस्तक ‘ऑन कॉम्प्रोमाइज’ का गुजराती अनुवाद) को प्रकाशित करने के बारे में उनकी सलाह मांगी और 1917 में साबरमती आश्रम पहुंचे।

उसी वर्ष 13 नवंबर को अपनी डायरी की शुरूआत करते हुए, उन्होंने इसे 15 अगस्त, 1942 तक जारी रखा जब पूना के आगा खान पैलेस में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उसी साल गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ आखिरी लड़ाई के लिए भारत छोड़ो आंदोलन लॉन्च किया था।

1919 में जब पंजाब में ब्रिटिश सरकार ने गांधी को गिरफ्तार किया, तो उन्होंने देसाई को अपना उत्तराधिकारी नामित किया। देसाई को पहली बार 1921 में गिरफ्तार किया गया था और उनके लेखन के लिए एक साल जेल की सजा सुनाई गई थी।

जेल में, देसाई इस बात से नाराज थे कि जेल अधिकारियों ने कैदियों के साथ दुर्व्यवहार किया, उन्हें बार-बार पीटा। ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ में प्रकाशित एक भारतीय जेल के अंदर के जीवन का वर्णन करने वाली उनकी रिपोर्ट ने ब्रिटिश अधिकारियों को कुछ कठोर सुधार उपाय लाने के लिए मजबूर किया।

देसाई ने सरदार पटेल के साथ बारदोली सत्याग्रह में भाग लिया और गुजराती में सत्याग्रह का इतिहास लिखा, जिसका उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद ‘द स्टोरी ऑफ बारदोली’ के रूप में किया।

नमक सत्याग्रह में उनकी भागीदारी के लिए गिरफ्तार और कैद किया गया। हालांकि उन्हें गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते के बाद रिहा कर दिया गया और गांधी के साथ 1931 में लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में मीराबेन, देवदास गांधी और प्यारेलाल के साथ थे। वह किंग जॉर्ज पंचम के साथ बैठक में गांधी के साथ जाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे।

गांधी-इरविन संधि के टूटने और गोलमेज सम्मेलन में गतिरोध के बाद गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू किया और न्यू वायसराय लॉर्ड विलिंगडन ने आंदोलन को कुचलने के लिए ²ढ़ संकल्पित होकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसने का आदेश दिया।

1932 में, देसाई को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और गांधी और सरदार पटेल के साथ जेल भेज दिया गया। एक साल बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और बेलगाम जेल में बंद कर दिया गया। उन्होंने 1939 में राजकोट और मैसूर की रियासतों में जन आंदोलनों को संगठित करने में भी भूमिका निभाई और 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान प्रतिभागियों के चयन का प्रभारी बनाया गया।

देसाई की अंतिम जेल अवधि 8 अगस्त, 1942 की भारत छोड़ो घोषणा के बाद हुई। 9 अगस्त की सुबह गिरफ्तार हुए, छह दिन बाद 15 अगस्त को उनकी मृत्यु हो गई, उनकी मृत्यु के ठीक पांच साल बाद भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की।

 

विष्णु मखीजानी

–आईएएनएस

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