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मथुरा कृष्ण जन्मभूमि केस में हाईकोर्ट के फैसले का यूपी डिप्टी सीएम ने किया स्वागत

UP Deputy CM welcomed the High Court's decision in the Mathura Krishna Janmabhoomi case.

प्रयागराज, 1 अगस्त । मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष को राहत देते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत के फैसले का यूपी के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने स्वागत किया।

मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, वक्फ एक्ट, लिमिटेशन एक्ट और स्पेसिफिक पजेशन रिलीफ एक्ट के तहत केस दायर किया था कि हिंदी पक्ष की याचिका खारिज की जाय। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही हिंदू पक्ष की सभी 18 याचिकाओं पर अब एक साथ सुनवाई होगी।

हाईकोर्ट के फैसले पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि अदालत के फैसले का स्वागत है। न्यायालय के आदेश से ही अयोध्या से लेकर पूरे विश्व में जय श्री राम हुआ है। अब न्यायालय के जरिए ही पूरे देश दुनिया में जय श्री कृष्ण होगा। अदालत के फैसले का राम भक्त, कृष्ण भक्त और शिव भक्त के रूप में स्वागत करता हूं।

ब्रजेश पाठक ने भी फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जनभावना का सम्मान है। उनके हित में फैसला आया है।

उन्होंने कहा कि कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल सिविल वाद पोषणीय है। झटके पर झटका खा रही ईदगाह कमेटी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। मुस्लिम पक्ष की ओर से सभी सिविल वादों की पोषणीयता को लेकर दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन अदालत ने दिन प्रतिदिन लंबी सुनवाई की। इसके बाद जून में फैसला सुरक्षित कर लिया था।

उन्होंने कहा कि हिंदू पक्ष का सिविल वाद शाही ईदगाह मस्जिद का ढांचा हटाकर जमीन का कब्जा देने और मंदिर का पुनर्निर्माण कराने की मांग को लेकर दायर किए गया है। दावा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के समय शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बने मंदिर को कथित तौर पर ध्वस्त करने के बाद किया गया था। इसलिए उस विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा का अधिकार है। ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है। शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है। बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया। मुस्लिम पक्षकारों की दलील है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा मुकदमा चलने योग्य नहीं है। उपासना स्थल कानून यानी प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वामित्व को लेकर दाखिल सिविल वादों को पोषणीय माना तथा मस्जिद पक्ष की अर्जियां खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि मुकदमा विचारणीय है, हिंदू पक्ष की याचिका सुनने योग्य है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की कोर्ट ने छह जून को फैसला सुरक्षित किया था, जिसे गुरुवार को सुनाया गया। मंदिर पक्ष के अधिवक्ताओं ने इसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति की दिशा में महत्वपूर्ण बताया है। मामले में अगली सुनवाई अब 12 अगस्त से होगी।

मंदिर पक्ष के अधिवक्ता ने बताया कि श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले में मंदिर पक्ष की बड़ी जीत हुई है। हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के सीपीसी के आदेश सात, रूल -11 का आवेदन खारिज कर दिया है। मस्जिद पक्ष की तरफ से इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के संकेत दिए गए हैं।

अधिवक्ता ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला मंदिर-मस्जिद विवाद में चल रहे मुकदमों की पोषणीयता पर आया है। ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत मुस्लिम पक्ष द्वारा की गई आपत्तियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज किया। हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल किए गए मुकदमों में अंतरिम फैसला सुनाया।

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