नवजात शिशु का महत्व उसकी मां को सबसे ज्यादा समझ में आता है, क्योंकि उसकी हल्की सी छींक भी उसे बहुत परेशान कर देती है। ऐसे समय में शिशु रोग विशेषज्ञों की भूमिका अहम हो जाती है, क्योंकि नवजात शिशु अपने लक्षण नहीं बता पाते और डॉक्टरों को जांच के आधार पर उनका इलाज और प्रभावी देखभाल करनी होती है। यह बात पंडित बीडी शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, रोहतक के कुलपति डॉ. एचके अग्रवाल ने गुरुवार को पीजीआईएमएस के नियोनेटोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित सुविधा आधारित नवजात शिशु देखभाल (एफबीएनसी) पर चार दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कही।
कुलपति ने कहा कि नवजात शिशु की देखभाल में शामिल प्रत्येक बाल रोग विशेषज्ञ और नर्सिंग स्टाफ को इन नाजुक स्थितियों, विशेषकर आईसीयू में, को संभालने के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
डॉ. अग्रवाल ने शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए राज्य के चल रहे प्रयासों के बारे में बात की और कहा कि सरकार डॉक्टरों और नर्सिंग अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण दे रही है। उन्होंने कहा कि राज्य की वर्तमान शिशु मृत्यु दर लगभग 19 प्रति 1,000 जीवित जन्म है और लक्ष्य 2030 तक इस आंकड़े को 10 तक कम करना है।
कुलपति ने कहा कि यह लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब चिकित्सा पेशेवरों को नवजात आईसीयू देखभाल में पूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए तथा वे मरीजों को सर्वोत्तम संभव देखभाल प्रदान करें। उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन के लिए पीजीआईएमएस, रोहतक के नियोनेटोलॉजी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. जगजीत दलाल को भी बधाई दी।
डॉ. दलाल ने कार्यक्रम के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रतिभागियों को नवजात शिशुओं में श्वसन संबंधी समस्याओं के प्रबंधन पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि समय से पहले जन्मे शिशुओं को अक्सर सांस लेने में कठिनाई होती है, और श्वास नली में ट्यूब डाले बिना, CPAP या अन्य गैर-आक्रामक तरीकों से ऑक्सीजन प्रदान करने से फेफड़ों के संक्रमण का खतरा कम हो सकता है।
उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण से मस्तिष्क का बेहतर विकास होता है तथा निमोनिया की पुनरावृत्ति की संभावना कम हो जाती है। इस कार्यक्रम में डॉ. शिखा, डॉ. योगेश और डॉ. मुकेश भी शामिल हुए।