चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य की रिकॉर्डिंग सामान्य रूप से अदालतों में मामलों के निपटान में तेजी लाती है। न्यायमूर्ति अरुण मोंगा का यह दावा पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की उस याचिका पर आया जिसमें उन्होंने मानहानि की शिकायत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए शिकायतकर्ता के गवाह के तौर पर अपना बयान दर्ज कराने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति मोंगा ने आज उपलब्ध आदेश में कहा कि वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने के लिए एचसी द्वारा बनाए गए नियमों का उद्देश्य अदालतों में मामलों के निपटान को सुविधाजनक बनाना और तेज करना था।
सिद्धू लुधियाना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के 15 अक्टूबर के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहे थे, जिसके तहत मानहानि शिकायत में वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक शिकायतकर्ता के गवाह के रूप में अपना बयान दर्ज करने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था। बलविंदर सिंह सेखों ने पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता ने सिद्धू का नाम गवाह के तौर पर दिया था।
न्यायमूर्ति मोंगा ने कहा कि मामले के तथ्य वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से याचिकाकर्ता के साक्ष्य को रिकॉर्ड करने से इनकार करने को उचित नहीं ठहराते। मामला प्रारंभिक साक्ष्य दर्ज करने के पूर्व-समन चरण में था और उसकी जिरह की आवश्यकता नहीं थी।
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