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कौन है भोजपुरी इंडस्ट्री के ‘सलीम-जावेद’, जिनका मैजिकल टच है हिट की गारंटी

Who are the 'Salim-Javed' of Bhojpuri industry, whose magical touch is a guarantee of hit?

पटना, 3 अगस्त । भोजपुरी सिनेमा अब पूरे देश में अपना जलवा बिखेर रहा है। सोशल मीडिया से लेकर फिल्मी पर्दे तक इसकी धूम है। गाने और फिल्में रिलीज के साथ ही हिट हो रही हैं। इसके पीछे की वजह एक्टर्स की मेहनत तो है ही, साथ ही लेखकों का हुनर भी है। फिल्में लेखक की कल्पना और रचनात्मकता पर ही आधारित होती है। उनके द्वारा लिखे गई कहानी के किरदार और घटनाएं ही दर्शकों को आकर्षित करते हैं।

जब बात लेखकों की हो रही हो, तो सुरेंद्र मिश्रा और विवेक मिश्रा की जोड़ी को भोजपुरी इंडस्ट्री में सलीम-जावेद की जोड़ी कहा जाता है।

जिस तरह बॉलीवुड में सलीम-जावेद की जोड़ी ने मिलकर एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी, उसी तरह सुरेंद्र और विवेक की जोड़ी ने मिलकर बेहतरीन फिल्मों के जरिए भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाया है। आज हम इस जोड़ी द्वारा दी गई कुछ हिट फिल्मों के बारे में बात करेंगे।

सुरेंद्र मिश्रा और विवेक मिश्रा ने मिलकर कई हिट भोजपुरी फिल्में दी, जिसमें ‘सिंदूरदान’, ‘बेजुबान’, ‘यशोदा का नंदलाला’, ‘सास अठन्नी बहू रुपैया’, ‘घर की मालकिन’, ‘अपहरण’, ‘सौभाग्यवती’ और हाल ही में रिलीज हुई ‘रिद्धि सिद्धि’ और ‘उतरन’ जैसी फिल्में शामिल हैं।

अगर बात करें ‘सास अठन्नी बहू रुपैया’ की, तो सुरेंद्र और विवेक की जोड़ी ने इस फिल्म की कहानी को काफी मजेदार तरीके से लिखा है। यह फिल्म सास-बहू के कभी मीठी और कभी तीखी नोकझोंक पर है।

फिल्म की कहानी में मां अपने बेटे के लिए बहु की तलाश कर रही है। इस दौरान उनकी मुलाकात ऋचा दीक्षित से होती है, लेकिन प्यार से नहीं, बल्कि तकरार से। दोनों के बीच किसी चीज को लेकर लड़ाई होती है। मां इस बात से बेखबर है कि ऋचा वही लड़की है, जिससे उसका बेटा प्यार करता है। कहानी में आगे किसी तरह दोनों की शादी हो जाती है। फिर घर में सास-बहू का संग्राम शुरू होता है, जिसे देख दर्शक काफी एन्जॉय करेंगे।

वहीं बात करें ‘यशोदा का नंदलाला’ की, तो सुरेंद्र और विवेक ने इस फिल्म के जरिए किरदारों को कुछ इस तरह अपनी कहानी में पेश किया, जो सीधा आपके दिल में उतर जाएंगे। यह कहानी यकीनन आपको इमोशनल कर देगी।

फिल्म की कहानी काजल राघवानी और गौरव झा की है, जो अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश तो हैं, लेकिन संतान के लिए तड़प रहे हैं। संतान नहीं होने के चलते दोनों की परेशानियां बढ़ने लगती हैं। गांव वालों से लेकर परिवार के लोग तक, उनको औलाद न होने को लेकर ताना मारते हैं, खरी-खोटी सुनाते हैं।

सुरेंद्र और विवेक ने फिल्म का क्लाइमेक्स बेहद रोमांचक ढंग से दिया है, जो दर्शकों को सीट से बांधे रखता है।

सुरेंद्र और विवेक की कहानी निर्माण का तरीका, पटकथा लेखन, संवाद लेखन, गीत लेखन और फिल्म की दिशा तय करना आदि की समझ कमाल की है। यही वजह है कि लोग उन्हें काफी पसंद करते हैं।

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