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प्रसव के समय डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा अधिक : शोध

Women suffering from depression at the time of delivery have higher risk of heart problems: Research

लंदन, 19 जून । एक शोध में यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं प्रसव के समय डिप्रेशन से पीड़ित होती हैं, उनमें भविष्‍य में हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा अधिक होता है।

जो महिलाएं प्रसव से पहले या बाद में डिप्रेशन की समस्या से पीड़ित होती हैं, उनमें भविष्‍य में 20 वर्ष तक उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और हृदयाघात संबंधी समस्याओं का जोखिम अधिक हो सकता है।

स्वीडिश शोधकर्ताओं ने अपने शोध में कहा कि प्रसव से पहले या बाद में डिप्रेशन और हार्ट डिजीज के बीच संबंध के बारे में अभी तक खुलासा नहीं हो पाया है। इस शोध को करने के लिए एक दशक तक महिलाओं को निगरानी में रखा गया।

यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित इस शोध में 2001 से 2014 के बीच प्रसवपूर्व डिप्रेशन से पीड़ित लगभग 56,000 महिलाओं के डेटा की जांच की गई।

उनकी जानकारी लगभग 546,000 महिलाओं से मेल खाती है, जिन्होंने उसी समय में ही बच्‍चों को जन्‍म दिया था। इन महिलाओं में भी प्रसव से पहले डिप्रेशन का पता नहीं चला था।

महिलाओं पर औसतन 10 वर्षों तक नजर रखी गई तथा कुछ पर इसका पता चलने के बाद 20 वर्षों तक निगरानी रखी गई।

प्रसवकालीन डिप्रेशन से पीड़ित लगभग 6.4 प्रतिशत महिलाओं में शोध के दौरान जांच में हृदय रोग के बारे में पता चला। वहीं जो महिलाएं डिप्रेशन का शिकार नहीं थी, उनमें ये प्रतिशत 3.7 था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रसवपूर्व डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में शोध की अवधि के दौरान हृदय रोग का जोखिम 36 प्रतिशत बढ़ गया था।

उन्होंने पाया कि प्रसव पूर्व डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में हृदय रोग विकसित होने की संभावना 29 प्रतिशत अधिक थी, जबकि प्रसव के बाद डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में हृदय रोग विकसित होने की संभावना 42 प्रतिशत अधिक थी।

शोधकर्ताओं ने बताया कि उन महिलाओं में परिणाम बेहद स्पष्ट थे, जिन्हें गर्भावस्था से पहले डिप्रेशन का सामना नहीं करना पड़ा था।

उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के हृदय संबंधी रोगों में जोखिम बढ़ा हुआ पाया गया है, जिससे महिलाओं में इस्केमिक हृदय रोग, हृदयाघात और उच्च रक्तचाप विकसित होने की संभावना बढ़ गई है।

स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की डॉ. एम्मा ब्रैन ने कहा, ”हमारे इस शोध के परिणाम उन लोगों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं, जिन्हें भविष्‍य में हृदय रोग का खतरा अधिक है, ताकि इस जोखिम को कम करने के लिए कदम उठाए जा सके।”

ब्रैन ने कहा, “हम जानते हैं कि प्रसवपूर्व डिप्रेशन को रोका जा सकता है, क्योंकि कई लोगों के लिए यह पहला मामला होता है।”

उन्होंने कहा कि हमारे निष्कर्ष यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि प्रसव के बाद मां की देखभाल अच्छे से हो। साथ ही महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जाए।

आगे कहा कि अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि आखिर डिप्रेशन का प्रसव से क्या संबंध है।

“हमें इसे समझने के लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता है ताकि हम डिप्रेशन को रोकने और सी.वी.डी. के जोखिम को कम करने के सर्वोत्तम तरीके खोज सकें।”

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