आज मशहूर शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी की 22वीं पुण्यतिथि है। छहः दशक तक मजरूह ने फिल्म इंडस्ट्री को बेहतरीन गाने दिए हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भेज दिया था जेल
उनकी एक कविता के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें जेल भेज दिया था। मजरूह से माफी और जेल में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया, पर मजरूह को अपनी आजाद कविता को किसी जंजीर में नहीं जकड़ना था तो उन्होंने खुद जेल में रहना सही समझा। मजरूह ऐसे पहले गीतकार थे जिन्हें गीत लिखने के लिए दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया गया था।
इश्क में हकीम से हो गए थे शायर
मजरूह यूनानी की पढ़ाई पूरी कर हकीम बन चुके थे। इसी बीच लोगों की नब्ज नापते-नापते वो एक तहसीलदार की बेटी को दिल दे बैठे। लेकिन ये बात उस लड़की के रसूखदार पिता को नागवार गुजरी। जिसके बाद दोनों को अलग होना पड़ा। लेकिन ये इश्क मजरूह को शायर बना गया।
उनके कुछ खास शेयर
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
——————–
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
——————–
ऐसे हंस हंस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं
————————
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
———————-
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
——————————–
Leave feedback about this