धर्मशाला, 18 जुलाई हिमाचल प्रदेश में प्रवासी गुज्जर और गद्दी समुदाय अपने मवेशियों को वन भूमि पर चराने के अधिकार खो रहे हैं। राज्य में कई स्थानों पर ये समुदाय चराई के अधिकार को लेकर वन विभाग के साथ टकराव में हैं।
सूत्रों का कहना है कि इन समुदायों को अपने मवेशियों को धौलधार वन्यजीव अभ्यारण्य और कांगड़ा जिले के पोंग डैम वन्यजीव अभ्यारण्य, चंबा जिले के सलूनी क्षेत्र और लाहौल और स्पीति जिले के कई इलाकों में अपने पारंपरिक चरागाहों पर ले जाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे अक्सर स्थानीय वन अधिकारियों के साथ पारंपरिक चरागाहों में अपने मवेशियों को चराने को लेकर झगड़ते रहते हैं जो अब वन्यजीव अभ्यारण्यों या संरक्षित वनों के अंतर्गत आते हैं।
सूत्रों का कहना है कि प्रवासी समुदायों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई स्थानों पर उन्हें वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के तहत अधिकार नहीं दिए गए हैं। यह अधिनियम आदिवासी और अन्य पारंपरिक समुदायों को वन उपज पर अधिकार देता है, जिसे वे सदियों से चरागाह के रूप में उपयोग करते आ रहे हैं।
प्रवासी चरवाहों के राज्य स्तरीय संगठन गुमंतू पशुपालक महासभा के राज्य सलाहकार अक्षय जसरोटिया कहते हैं कि इस साल गर्मियों में चंबा जिले के ऊपरी इलाकों में प्रवास करने वाले कई गुज्जर समूहों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। अधिकारियों ने उन्हें चंबा के वन क्षेत्रों में जाने से रोक दिया। प्रवासी चरवाहों को हर साल प्रवास के दौरान कांगड़ा जिले के धौलाधार और पौंग डैम वन्यजीव अभ्यारण्यों में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लाहौल और स्पीति जिले में पारंपरिक गद्दी समुदायों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वन विभाग ने उनके चरागाहों को इको-टूरिज्म गतिविधियों के लिए दे दिया है। अब वहां पर्यटन गतिविधियां चलाने वाले लोग गद्दियों को चरागाहों में जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
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