September 25, 2024
National

मध्य प्रदेश : सहकारी समितियों का चुनाव टलना तय, सहकारिता जगत के नेताओं में फिर निराशा

भोपाल, 25 जुलाई । मध्य प्रदेश में हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद एक बार फिर सहकारी समितियों के चुनाव टलना तय हो गया है। चुनाव अब कब होंगे, यह चिंता सहकारी जगत के नेताओं को सताने लगी है।

राज्य में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के चुनाव हर पांच साल में होते हैं। इनका अंतिम चुनाव वर्ष 2013 में हुआ था, उसके बाद से ही लगातार चुनाव प्रक्रिया टलती जा रही है। पिछले दिनों मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को सहकारी समितियां के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे।

इन निर्देशों के आधार पर राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 26 जून से नौ सितंबर के बीच चुनाव कराने का कार्यक्रम भी जारी कर दिया था। चार चरणों में मतदान भी प्रस्तावित था, लेकिन किसानों के कृषि कार्य में व्यस्त होने और सदस्यता सूची तैयार न होने का हवाला देकर फिलहाल चुनाव को टाला जा रहा है।

अब विभाग की ओर से कहा जा रहा है कि संभव है कि खरीफ फसलों की बोवनी होने के बाद चुनाव अक्टूबर-नवंबर में कराए जा सकते हैं। यह पहली बार नहीं हो रहा है बल्कि लगातार यह सिलसिला बीते वर्षों से जारी है। इन संस्थाओं के चुनाव न होने से यहां पर प्रशासकों का कब्जा बना हुआ है। इसके चलते इन समितियां से जुड़े किसानों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

जानकारी के मुताबिक, राज्य में साढ़े चार हजार सादिक प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं, जिनसे लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं। यहां चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे और नियम अनुसार 2018 में चुनाव होना थे, लेकिन बीते छह साल से यह चुनाव नहीं हो पा रहे हैं।

इन समितियां के चुनाव गैर-दलीय आधार पर होते हैं, इसके बावजूद राजनीति से जुड़े लोगों की इनमें खास दिलचस्पी होती है। यही कारण है कि तमाम राजनीतिक दलों में सहकारिता प्रकोष्ठ भी हैं। चुनाव के लिए समितियां भी बन गईं और बैठकों का दौर भी चल पड़ा।

किसान नेता केदार सिरोही का कहना है कि कृषि सख्त समितियां किसानों की ताकत होती हैं, किसानों के प्रतिनिधि के इन समितियों में होने से तमाम समस्याओं का निपटारा हो जाता है, मगर सरकारें तो सहकारी आंदोलन को ही खत्म कर देना चाहती हैं। सिर्फ कृषि साख सहकारी समिति ही नहीं मंडी और नहर पंचायत तक के चुनाव नहीं हो पा रहे हैं। इससे ग्रामीण स्तर से निकल कर उभरने वाले नेतृत्व का भी संकट आने वाले समय में खड़ा हो सकता है।

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