January 16, 2025
National

प्रयागराज में महाकुंभ है विशेष, श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा ने दी जानकारी

Mahakumbh is special in Prayagraj, Shri Panchayati Bada Udasin Akhara gave information

प्रयागराज, 2 दिसंबर । प्रयागराज की पावन धरती पर 12 वर्षों बाद 2025 में दिव्य और भव्य संयोग में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। महाकुंभ-2025 का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होगा। महाकुंभ की तैयारियां भी जोरो शोरों से चल रही हैं और अलग-अलग अखाड़ों के द्वारा भूमि पूजन और ध्वजा स्थापित करने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। महाकुंभ में अखाड़ों की भागीदारी होती है, अखाड़े की परंपरा होती है, प्रयागराज में महाकुंभ के महत्व पर श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के महंत दुर्गादास ने आईएएनएस से बातचीत की।

महंत दुर्गा दास ने अखाड़े का परिचय श्री श्री 108 पूज्यपाद अखंड अद्वैत श्रीसत पंचमेश्वर पंचायती अखाड़ा, मुख्यालय प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के रूप में देते हुए बताया कि अखाड़े का बहुत ही प्राचीन इतिहास है। यह ब्रह्माजी के मानस पुत्र के समय से चला आ रहा है। इसी संप्रदाय में भगवान शिव का बाल रूप में प्रादुर्भाव हुआ और 149 वर्षों तक भगवान श्रीकृष्ण धरा धाम पर रहकर अंतर्धान हुए। वह आज भी विराजमान होते हैं और सभी भक्तों की सच्ची मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

महाकुंभ प्रयागराज की धरती पर होने का क्या महत्व है? इस पर बात करते हुए मंहत दुर्गा दास ने कहा, “इसका बहुत महत्व है क्योंकि ब्रह्माजी ने यहां पर यज्ञ किया था। यह दशाश्वमेध यज्ञ त्रिवेणी की पुण्य स्थली पर किया गया था। इसके अलावा यहां मां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। इसलिए यहां स्नान का महत्व है। इसके अलावा ज्ञान के रूप में अमृतज्ञान भी यहां निरंतर प्रवाहित रहता है। इस जगह पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी, जिसका लाभ यहां प्राप्त होता है।”

उन्होंने आगे बताया कि सभी संत महामंडलेश्वर, भक्तगण और विद्वानों का यहां समागम होता है। इसलिए इस जगह का बहुत महत्व है। यहां मकर और कुंभ राशि लग्न में स्नान करने का विशेष महत्व होता है। 14 जनवरी का स्नान का बहुत बड़ा महत्व है जिसमें बहुत लोग हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा मौनी अमावस्या में भी विशेष तौर पर करोड़ों की संख्या में लोग स्नान के लिए आते हैं। यहां पर स्नान करने से मनुष्य को एक नई ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

कुंभ के शब्द का मतलब कलश होता है यानी कुंभ गागर में सागर है। सनातन धर्म में कलश की स्थापना होती है जिसे कुंभ भी कहा जाता है। यह 12 साल में होता है तो महाकुंभ कहा जाता है और 6 साल में जब यही मुहूर्त आता है तो हम उसे अर्धकुंभ कहते हैं।

महंत ने आगे बताया, “सभी अखाड़ों का प्रमुख स्नान 14 जनवरी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी को होता है। इसे हम विशेष स्नान, देवऋषि स्नान, राष्ट्रीय स्नान जैसी संज्ञा देने जा रहे हैं। अखाड़े की प्राचीन परंपरा है। तब उस समय के हिसाब से व्यवस्था चलती थी। आज के समय में 200 से 300 गुना ज्यादा व्यवस्था शासन और प्रशासन की ओर से की गई है ताकि श्रद्धालुओं को कष्ट ना हो। इस बार तो गूगल मैप से भी नेविगेशन संभव है। पूरे मेले में चौराहे पर टीवी लगाकर भी लोगों को सूचना दी जाएगी। इसके अलावा यातायात, स्वास्थ्य, स्वच्छ वातावरण का भी संदेश दिया जा रहा है। हम प्लास्टिक से दूर रहेंगे।”

कुल मिलाकर शासन -प्रशासन की ओर किए गए कार्य सराहनीय है। कुछ कार्य होने बाकी हैं, उम्मीद है कि वह भी जल्द पूरे हो जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि अखाड़े की सेवा में लगे सभी लोग संत होते हैं जो देश और समाज की भलाई के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और विश्व में भाईचारे को बनाने का संदेश देते हैं।

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