नई दिल्ली, 21 दिसंबर । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए साल 2024 एक और सफल वर्ष में शुमार हो गया है। पहले ही दिन एक्सपोसैट की लॉन्चिंग के साथ साल की शुरुआत करने के बाद अंतिम महीने में एक ऐसे मिशन को अंजाम दिया जो पूरी तरह वाणिज्यिक था और सिर्फ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के उद्देश्य से था।
इसरो ने इस साल पांच मिशनों को अंजाम दिया। पहला मिशन 1 जनवरी 2024 को लॉन्च किया गया। इसमें पीएसएलवी-सी58 रॉकेट से एक्सपोसैट नामक उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया। भारत ने पहली बार पूरी तरह अंतरिक्ष की तरंगों के अध्ययन के लिए समर्पित किसी उपग्रह का प्रक्षेपण किया है। यह खगोलीय एक्स-रे स्रोतों से आने वाली तरंगों के बेहद विषम परिस्थितियों में पोलराइजेशन का अध्ययन करेगा।
साल का दूसरा मिशन इनसैट-3डीएस 17 फरवरी को लॉन्च किया गया। इसे जीएसएलवी-एफ14 रॉकेट से जियोसिंक्रोनस कक्षा में स्थापित किया गया। इनसैट-3डीएस तीसरी पीढ़ी का मौसम संबंधी उपग्रह है जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अपने इस्तेमाल के लिए बनवाया है। यह मौसम की भविष्यवाणी में काफी मददगार साबित हो रहा है।
इसरो का तीसरा मिशन साल के उत्तरार्ध में 16 अगस्त को लॉन्च किया गया। यह हल्के पे-लोड के प्रक्षेपण के लिए देश में ही विकसित एसएसएलवी (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च वीइकल) की तीसरी परीक्षण उड़ान थी। मिशन को एसएसएलवी-डी3/ईओएस-08 नाम दिया गया था। इसके साथ पृथ्वी के ऑब्जर्वेशन के लिए बने ईओएस-08 उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया जो सफल रहा।
अब तक इसरो छोटे और हल्के उपग्रहों की लॉन्चिंग के लिए भी सामान्य रॉकेट का इस्तेमाल कर रहा था जिससे प्रक्षेपण का खर्च बढ़ जा रहा था। एसएसएलवी से इस तरह के मिशन को अंजाम देने से खर्च में कमी आएगी।
इसरो का अगला मिशन जीसैट-एन2 था। यह एक भारी संचार उपग्रह है। इसका प्रक्षेपण भारतीय समय के अनुसार, 19 नवंबर को अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से अमेरिका के फ्लोरिडा से किया गया। यह का-का बैंड का एचटीएस सैटेलाइट है जिसकी क्षमता 48 जीबीपीएस की है। यह अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप समेत पूरे भारत के लिए संचार सुविधा मुहैया कराने में सक्षम है। उपग्रह का वजन 4,700 किलोग्राम होने के कारण इसके प्रक्षेपण के लिए इसरो को स्पेसएक्स की मदद लेनी पड़ी।
साल का अंतिम मिशन प्रोबा-3 रहा। इसकी खास बात यह थी कि जहां जीसैट-एन2 के प्रक्षेपण के लिए भारत ने अमेरिकी कंपनी की मदद ली तो वहीं प्रोबा-3 मिशन पूरी तरह से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के उपग्रहों की लॉन्चिंग के लिए था। इसरो के पीएसएलवी-सी59 रॉकेट ने ईएसए के कोरोनाग्राफ और ऑकल्टर उपग्रहों को तय कक्षा में स्थापित किया। यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि दोनों उपग्रहों को एक ही कक्षा में बिल्कुल पास-पास स्थापित करना था। इस मिशन के साथ इसरो ने एक बार फिर साबित किया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत किसी से कम नहीं है। दुनिया की शीर्ष अंतरिक्ष एजेंसियां भी अपने चुनिंदा मिशनों के लिए इसरो पर भरोसा करती हैं।
अगले साल इसरो का पहला मिशन गगनयान की पहली मानवरहित उड़ान हो सकती है। अंतरिक्ष एजेंसी ने इसके लिए एचएलवीएम3-जी1 रॉकेट की असेम्बली शुरू कर दी है। यह स्वदेशी मिशन में किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में भेजने की दिशा में पहला कदम होगा। भविष्य में एक और मानव रहित उड़ान के बाद तीसरे मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजा जाएगा। इस मिशन के लिए कई तरह के प्रयोग सफल हो चुके हैं।
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