February 5, 2025
Rajasthan

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में वसंत उत्सव

Spring festival at the Dargah of Khwaja Moinuddin Chishti

अजमेर, 4 फरवरी । ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी ‘वसंत उत्सव’ धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर शाही कव्वालों ने अमीर खुसरो के लिखे गीतों काे पेश किया और वसंत के रंग में रंगे गीतों के साथ माहौल को खुशनुमा बना दिया।

शाही कव्वाल और उनके साथियों ने पीले फूलों का गुलदस्ता हाथ में लेकर, ‘क्या खुशी और ऐश का सामान लाती है वसंत’, ‘ख्वाजा मोइनुद्दीन के घर आज आती है वसंत’ जैसे गीत गाए।

वसंत उत्सव के जुलूस में दरगाह के कव्वाल और अजमेर दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती शामिल हुए।

जुलूस बुलंद दरवाजा, सहन चिराग और संदली गेट से होते हुए अहाता-ए-नूर तक पहुंचा। यहां पूरी अकीदत के साथ पीले फूलों का गुलदस्ता ख्वाजा साहब की मजार पर पेश किया गया। इस अवसर पर दरगाह के खादिम भी मौजूद थे।

वसंत उत्सव का खास महत्व है, क्योंकि यह न केवल प्रकृति के सौंदर्य से जुड़ा है, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक भी है। ख्वाजा साहब की दरगाह में ऐसे उत्सवों से साम्प्रदायिक सद्भावना को बल मिलता है। देश का साम्प्रदायिक माहौल चाहे जैसा भी हो, दरगाह में हमेशा सद्भावना का माहौल बना रहता है। यही कारण है कि रोजाना हजारों हिंदू श्रद्धालु दरगाह में जियारत के लिए आते हैं।

अजमेर दरगाह प्रमुख के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने आईएएनएस से खास बातचीत करते हुए कहा कि भारत की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारे रस्मों-रिवाज हैं। आज हम वसंत के त्योहार की रस्म के बारे में बात कर रहे हैं, जो हिंदुस्तान की परंपरा और संस्कृति को जोड़ने का काम करती है। यह रस्म अजमेर शरीफ में हर साल होती है, जो हिंदू तिथियों के हिसाब से माघ महीने की पंचमी को मनाई जाती है।

उन्होंने कहा कि इस रस्म में सज्जाद सैयद साहब की देखरेख में लोग फूलों के गुलदस्ते लेकर वसंती गीत गाते हैं। यह परंपरा निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह से जुड़ी है। एक बार जब उनके भांजे का निधन हुआ था, तब वह लंबे समय तक कुटिया में ही बैठे रहते थे, तो उनके चाहने वाले उनके दर्शन करने के लिए आते थे। इसी दौरान, अमीर खुसरो जो क‍िसी यात्रा पर थे, तो उन्होंने रास्ते में देखा कि हिंदू लोग वसंती फूल लेकर मंदिर में अर्पित करने के लिए जा रहे हैं, तो उन्होंने इन लोगों से पूछा कि आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो लोगों ने कहा कि हम यह फूल अपने भगवान को चढ़ा रहे हैं। अमीर खुसरो इससे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने वही वसंती गीत गाए। जब ये गीत निज़ामुद्दीन औलिया के कानों में पड़े, तो वह अपनी कुटिया से बाहर आए, और खुश होकर अमीर खुसरो को गले लगा लिया। तब से यह परंपरा अजमेर शरीफ में भी शुरू हो गई और आज तक चली आ रही है।

उन्होंने आगे कहा कि इस रस्म का उद्देश्य केवल एक त्योहार मनाना नहीं है, बल्कि यह हमारे देश की विभिन्न सभ्यताओं और धर्मों के बीच मेल-मिलाप और सौहार्द को बढ़ावा देना है। जैसे हिंदू लोग भगवान के मंदिर में वसंती फूल अर्पित करते हैं, वैसे ही दरगाह में वसंती फूलों के साथ गीत और कव्वाली प्रस्तुत करते हैं। इससे हमारे देश में एकता, शांति और प्रेम का संदेश फैलता है।

उन्होंने कहा कि इस परंपरा से यह भी सीखने को मिलता है कि हमें एक-दूसरे के धर्म और रीति-रिवाजों का सम्मान करना चाहिए और मिलजुल कर रहना चाहिए। इस रस्म के माध्यम से देश में खुशहाली और सामूहिक शांति का पैगाम फैलता है। यह एक उदाहरण है कि कैसे अलग-अलग सभ्यताएं और धर्म आपस में जुड़ सकते हैं और एक साझा संदेश देते हैं कि हम सब मिलकर तरक्की और सुख-शांति की दिशा में आगे बढ़ें।

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